View Single Post
Old 08-12-2010, 12:32 PM   #17
ABHAY
Exclusive Member
 
ABHAY's Avatar
 
Join Date: Oct 2010
Location: Bihar
Posts: 6,259
Rep Power: 34
ABHAY has much to be proud ofABHAY has much to be proud ofABHAY has much to be proud ofABHAY has much to be proud ofABHAY has much to be proud ofABHAY has much to be proud ofABHAY has much to be proud ofABHAY has much to be proud ofABHAY has much to be proud ofABHAY has much to be proud of
Post Re: ~!!चन्द्रकान्ता!!~

छठवाँ बयान
तेजसिंह को विजयगढ़ की तरफ विदा कर वीरेन्द्रसिंह अपने महल में आये मगर किसी काम में उनका दिल न लगता था। हरदम चन्द्रकान्ता की याद में सिर झुकाए बैठे रहना और जब कभी निराश हो जाना तो चन्द्रकान्ता की तस्वीर अपने सामने रखकर बातें किया करना, या पलंग पर लेट मुंह ढांप खूब रोना, बस यही उनका कम था। अगर कोई पूछता तो बातें बना देते। वीरेन्द्रसिंह के बाप सुरेन्द्रसिंह को वीरेन्द्रसिंह का सब हाल मालूम था मगर क्या करते, कुछ बस नहीं चलता था, क्योंकि विजयगढ़ का राजा उनसे बहुत जबर्दस्त था और हमेशा उन पर हुकूमत रखता था।

वीरेन्द्रसिंह ने तेजसिंह को विजयगढ़ जाती बार कह दिया था कि तुम आज ही लौट आना। रात बारह बजे तक वीरेन्द्रसिंह ने तेजसिंह की राह देखी, जब वह न आये तो उनकी घबराहट औऱ भी ज्यादा हो गई। आखिर अपने को संभाला और मसहरी पर लेट दरवाजे की तरफ देखने लगे। सवेरा हुआ ही चाहता था कि तेजसिंह पीठ पर एक गट्ठा लादे आ पहुंचे। पहरे वाले इस हालत में इनको देख हैरान थे, मगर खौफ से कुछ कह नहीं सकते थे। तेजसिंह ने वीरेन्द्रसिंह के केमरे में पहुंचकर देखा कि अभी तक वे जाग रहे हैं। वीरेन्द्रसिंह तेजसिंह को देखते ही वह उठ खड़े हुए और बोले, ‘‘कहो भाई, क्या खबर लाये ?’’

तेजसिंह ने वहाँ का सब हाल सुनाया, चन्द्रकान्ता की चिट्ठी हाथ पर रख दी, अहमद को गठरी खोल कर दिखा दिया औऱ कहा, ‘‘यह चिट्ठी है, और यह सौगात है !’’

वीरेन्द्रसिंह बहुत खश हुए। चिट्ठी को कई मर्तबा पढ़ा और आंखों से लगाया, फिर तेजसिंह से कहा, ‘‘सुनो भाई, इस अहमद को ऐसी जगह रक्खो जहाँ किसी को मालूम न हो, अगर जयसिंह को खबर लगेगी तो फसाद बढ़ जायेगा।

तेजसिंह: इस बात को मैं पहले से सोच चुका हूँ। मैं इसको एक पहाड़ी खोह में रख आता हूँ जिसको मैं ही जानता हूँ।
यह कह तेजसिंह ने फिर अहमद की गठरी बाँधी और एक प्यादे को भेजकर देवीसिंह नामी ऐयार को बुलाया जो तेजसिंह का शागिर्द, दिली दोस्त और रिश्ते में साला लगता था, तथा ऐयारी के फन में भी तेजसिंह से किसी तरह कम न था। जब देवीसिंह आ गये तब तेजसिंह ने अहमद की गठरी अपनी पीठ पर लादी और देवीसिंह से कहा, ‘‘आओ, हमारे साथ चलो, तुमसे एक काम है।’’ देवीसिंह ने कहा, ‘‘गुरुजी वह गठरी मुझको दो, मैं चलूं, मेरे रहते यह काम आपको अच्छा नहीं लगता।’’ आखिर देवीसिंह ने वह गठरी पीठ पर लाद ली और तेजसिंह के पीछे चल पड़े।

वे दोनों शहर के बाहर ही जंगल और पहाड़ियों में घूमघुमौवे पेचीदे रास्तों में जाते-जाते दो कोस के करीब पहुंचकर एक अंधेरी खोह में घुसे। थोड़ी देर चलने के बाद कुछ रोशनी मिली। वहां जाकर तेजसिंह ठहर गये औऱ देवीसिंह से बोले, ‘‘गठरी रख दो।’’
__________________
Follow on Instagram , Twitter , Facebook .
ABHAY is offline   Reply With Quote