अहा हा हा हा ...
अब क्या लिखता कुमार भाई जी जब साहित्य और पत्रकारिता में फर्क है कि पत्रकारिता पढ़ने लायक नहीं होती और साहित्य पढ़ा नहीं जाता।
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Originally Posted by Kumar Anil
हालाँकि आपके लेखकीय मेँ हास्य का पुट है और व्यवहारिक जीवन मेँ इनकी गुँजाइश बनी रहनी चाहिए अन्यथा सामाजिक परिस्थितयाँ अत्यन्त दुरूह एवं विषम हो जायेँगी । वैसे भी किसी भी समाज के लिए यूटोपिया की अवधारणा नितान्त कल्पना मात्र है ।
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