संत निकोलस की दरियादिल*ी की कहानी
संत निकोलस की दानशीलता के बारे में कई तरह की कहानियां हैं। कहते हैं, तरह-तरह की चीजों को बैग में भर-भर कर वे खिडकियों से बाहर फेंक देते थे, जिसका लाभ उठाते थे वे लोग जो ग़रीब व असहाय थे। संत निकोलस की दरियादिल*ी की एक बहुत ही मशहूर कहानी है कि उन्होंने एक ग़र*ीब की मदद की। जिसके पास अपनी तीन बेटियों की शादी के लिए पैसे नहीं थे और मजबूरन वह उन्हें मजदूरी और देह व्यापार के दलदल में भेज रहा था। तब निकोलस ने चुपके से उसकी तीनों बेटियों की सूख रही जुराबों में सोने के सिक्कों की थैलियां रख दी और उन्हें लाचारी की ज़िंदगी से मुक्ति दिलाई। इन सिक्कों से ही उन लड़कियों की शादी अच्छे से हो गई। बस तभी से क्रिसमस की रात दुनियाभर के बच्चे इस उम्मीद के साथ अपने मोजे बाहर लटकाते हैं कि सुबह उनमें उनके लिए गिफ्ट्स होंगे। बच्चों का ऐसा मानना है कि संत निकोलस यानी सांता क्लॉज़ उन्हें बहुत सारे उपहार देंगे। दुनियाभर में इससे मिलती जुलती परम्पराएँ है। इसी प्रकार फ्रांस में चिमनी पर जूते लटकाने की प्रथा है। हॉलैंड में बच्चे सांता के रेंडियरर्स के लिए अपने जूते में गाजर भर कर रखते हैं। हंगरी में बच्चे खिड़की के नज़दीक अपने जूते रखने से पहले खूब चमकाते हैं ताकि सांता खुश होकर उन्हे उपहार दे। यानि की उपहार बाँटने वाले दूत को खुश कर उपहार पाने की यह परम्परा सारी दुनिया में प्रचलित है। इसी प्रचलन से उन्हें बच्चों का संत कहा जाने लगा। सांता क्लॉज़ की सद्भावना और दयालुता के किस्से लंबे अरसे तक कथा-कहानियों के रूप में चलते रहे। एक कथा के अनुसार उन्होंने कोंस्टेटाइन प्रथम के स्वप्न में आकर तीन सैनिक अधिकारियों को मृत्यु दंड से बचाया था। सत्रहवीं सदी तक इस दयालु का नाम संत निकोलस के स्थान पर सेंटा क्लॉज़ हो गया। यह नया नाम डेनमार्क वासियों की देन है।