Re: पारख साहब के दिलचस्प किस्से
आत्मा की शान्ति के लिए वाह वाह
एक बहुत कंजूस व्यक्ति था.वह जब मरने को हुआ तो उसने अपने बेटे को बुलवा कर कहा,
“बेटा, मेरी एक इच्छा तुझे पूरी करनी है. मेरे मरने के पश्चात साधू संतों को बुलवा कर उनसे एक बार वाह वाह जरूर करवा देना. इससे मेरी आत्मा को शान्ति मिल जायेगी. बेटे के हाँ भर लेने के बाद पिता ने प्राण छोड़े.
बाप के मरने के बाद बेटे ने बिरादरी के पंडों पंडितों को बुलवाया और उनके समक्ष कहने लगा,
“पिता जी का मृत्युभोज करना है,”
पंडितजन उत्साहित हो कर बेटे के मुख की ओर देखने लगे. बेटे ने उनसे पूछा कि आप अपनी मन पसंद मिठाइयों और पकवानों का नाम लिखवाइए ताकि मृत्युभोज पर किसी वस्तु की कमी न रह जाए. सबको उसके पिता और उसकी कंजूसी के बारे में तो पता था ही. अतः उन्होंने एक दो सस्ती चीजो का नाम ले दिया. उसने कहा कि मिठाइयों के विषय में बतायें कि क्या बनवाया जाए. किसी ने कहा –बर्फी-, किसी ने कहा –जलेबी-, किसी ने दाल के हलवे की फरमाइश कर दी. और भी कई प्रस्ताव आये. उन सभी को शांत करते हुए उस कंजूस पुत्र ने सूचित किया कि ये सभी खाद्यान्न और मिठाइयाँ देसी घी से बनवाई जायेंगी, और साथ में खीर भी तैयार करवा लेंगे और पूरियां भी. यह सुनते ही सब लोगों की बांछे खिल गयीं. मन में प्रशंसा के भाव आने लगे क्योंकि किसी को इतनी बढ़िया दावत होने की उम्मीद नहीं थी. अतः उपस्थित ब्राहमणों के मुंह से लार टपकने लगी और उनके मुंह से “वाह वाह” की आवाजे निकलनी शुरू हो गयीं.
“वाह वाह” की आवाजों को सुनते ही, वह कंजूर पुत्र बोला,
“बस बस, मेरे पिता जी की “वाह वाह” वाली इच्छा पूरी हो गई. भोजन तो किसी को मेरे बाप ने भी नहीं कराया तो मैं क्या कराऊंगा.”
सभी ब्राह्मणों को काटो तो खून नहीं वाली हालत थी.
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