Re: टुनटुन की कहानी (Tuntun's Story)
इतनी उम्र हो जाने के बावजूद टुनटुन की चुहलबाज़ी, गर्मजोशी और चुटीली बातों में कोई कमी नहीं आई थी. मौक़ा देखकर मैं उनसे मिला और अपना परिचय देते हुए उनका इण्टरव्यू करने की इच्छा ज़ाहिर की तो तुरंत जवाब मिला, ‘ओए शर्मे-बेशर्मे, तू आजा कभी भी. लेकिन पहले फोन ज़रूर कर लियो’. जब कभी कहीं उनका ज़िक्र होता है तो उनके कहे ये शब्द हूबहू आज भी मेरे कानों में गूंजते हैं. तय समय के अनुसार 27 अक्टूबर 2003 की शाम ठीक 6 बजे मैं अपने फोटोग्राफर साथी अनिल मुरारका के साथ टुनटुन के बान्द्रा पश्चिम स्थित घर पर पहुंचा. मस्तमौला स्वभाव्, चुटीली बातें, बात-बात पर हंसना-हंसाना भले ही उनके व्यक्तित्व का जगज़ाहिर पहलू था लेकिन वास्तव में उसके पीछे अथाह दर्द छुपा हुआ था. ज़िन्दगी में उन्होंने शायद ही कभी कोई सुख देखा हो.
उनका ये एक रेकॉर्डेड इण्टरव्यू था जो आज भी मेरे पास सुरक्षित है.
लीजिए पेश है टुनटुन की कहानी, उन्हीं की ज़ुबानी -
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