07-02-2016, 10:35 AM
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Re: आलस
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Originally Posted by soni pushpa
आलस्य का रोग जिस किसी को भी जीवन में पकड़ लेता है तो फिर वह संभल नही पाता. आलस्य से देह और मन, दोनों कमजोर पड़ जाते हैं. आलसी व्यक्ति जीवन भर लक्ष्य से दूर भटकता रहता है. कहा भी गया है कि आलसी को विद्या कहाँ, बिना विद्या वाले को धन कहाँ, बिना धन वाले को मित्र कहाँ और बिना मित्र के सुख कहाँ ? आलस्य को प्रमाद भी कहा जाता है. कुछ काम नही करना ही प्रमाद नही है, बल्कि, अकरणीय, अकर्तव्य यानि नही करने योग्य काम को करना भी प्रमाद है. जो आलसी है वह कभी भी अपनी आत्म-चेतना से जुडाव महसूस नहीं करता
कई बार व्यक्ति कुछ करने में समर्थ होता है, फिर भी उस कार्य को टालने लगता है और धीरे-धीरे कई अवसर भी हाथ से निकल जाते हैं. तब पश्चाताप (remorse) के अलावा और कुछ नही बचता. अब पश्ताये का होत है जब चिड़िया चुग गई खेत एइसे वक़्त पर ही बनाई गई कहावत है शायद
"आज नही कल" आलसी व्यक्तियों का जीवन का सूत्र है. सफल होने के लिए जरुरी है कि हम आलस्य का त्याग करें और अपनी पूरी क्षमता से काम करें.और अपने शरीर को बिमारियों का घर ना बनने दें .
आप अपना काम करोगे किन्तु प्रसंशा आपकी समाज में होगी कर्मण्यता इंसान को उन्नति का पथ देती हैं , समाज में नाम के साथ मान सम्मान के साथ स्वस्थ शरीर देती है इसलिए आज से ही आलस को छोडिये और कर्म को महत्व दें अकर्मण्यता को अपने आस पास फटकने तक न दें फिर देखिये आपका जीवन खुशियों से कैसे भर जाता है और आपके जीवन की आधी समस्याएं अपने आप ही सुलझ जाएँगी ..
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इस आलेख के द्वारा आपने आलस्य या प्रमाद के विषय में बड़ा सुंदर विवरण प्रस्तुत किया है. यह मनुष्य का बहुत बड़ा शत्रु है और उसकी सफलता की राह में सबसे बड़ा रोड़ा भी है. यदि मनुष्य अपने कर्तव्य के प्रति सजग हो ओर अपने लक्ष्यों की प्राप्ति के लिये तत्पर हो कर कार्य करे, तो कोई कारण नहीं कि वह जीवन में धन-संपत्ति और संतोष प्राप्त न कर सके. आपका बहुत बहुत धन्यवाद, बहन पुष्पा जी.
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आ नो भद्रा: क्रतवो यन्तु विश्वतः (ऋग्वेद)
(Let noble thoughts come to us from every side)
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