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Old 13-06-2012, 02:38 AM   #36
Dark Saint Alaick
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Default Re: डार्क सेंट की पाठशाला

सच्चा साधक

एक बार एक संत के पास सुशांत नामक एक युवक आया। उसने कुछ देर तक तो संत के साथ धर्म चर्चा की, फिर थोड़े संकोच के साथ उनसे कहा - कृपया आप मुझे अपना शिष्य बना लीजिए। संत ने थोड़े विस्मय के साथ उस युवक से पूछा - मेरा शिष्य बनकर तुम क्या करोगे? उस युवक ने कहा - मैं भी आपकी तरह साधना करूंगा। संत मंद-मंद मुस्कराए और बोले - वत्स, जाओ यह सब कुछ भुलाकर जीवनयापन के लिए अपना कर्म करते रहो। संत की बात सुनकर सुशांत वहां से चला गया, मगर कुछ दिनों बाद फिर संत के पास आया। वह अपने जीवन से संतुष्ट नहीं था। उसने शिष्य बना लेने की अपनी मांग फिर संत के सामने दोहराई। इस बार संत ने उससे कहा - अब तुम स्वयं को भुलाकर घर-घर जाओ और भिक्षा मांगो। ऊंच-नीच, धनी-निर्धन का भेद भुलाकर जहां से जो भी भिक्षा ग्रहण करो; उसी से अपना गुजारा करते रहो। सुशांत संत के आदेशानुसार भिक्षा मांगने निकल पड़ा। भिक्षा लेते समय वह हमेशा अपनी नजरें नीची किए रहता। जो मिल जाता, उसी से संतोष करता। कुछ दिनों तक तो उसने संत के आदेश के तहत भिक्षा मांगी और उसके बाद फिर वह संत के पास आया। उसे आशा थी कि इस बार संत उसके आग्रह के नहीं ठुकराएंगे और उसे अवश्य अपना शिष्य बना लेंगे, लेकिन ऐसा नहीं हुआ । इस बार संत ने कहा - जाओ नगर में अपने सभी शत्रुओं और विरोधियों से क्षमा मांग कर आओ। शाम को घर-घर घूमकर सुशांत वापस आया और संत के सामने झुककर बोला -प्रभु, अब तो इस नगर में मेरा कोई शत्रु ही नहीं रहा। सभी मेरे प्रिय और अपने हैं और मैं सबका हूं। मैं किससे क्षमा मांगूं। इस पर संत ने उसे गले लगाते हुए कहा - अब तुम स्वयं को भुला चुके हो। तुम्हारा रहा सहा अभिमान भी समाप्त हो चुका है। तुम सच्चे साधक बनने लायक हो गए हो। अब मैं तुम्हें अपना शिष्य बना सकता हूं। यह सुनकर सुशांत की खुशी का ठिकाना न रहा।
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दूसरों से ऐसा व्यवहार कतई मत करो, जैसा तुम स्वयं से किया जाना पसंद नहीं करोगे ! - प्रभु यीशु
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