Re: ऐसा देस हो मेरा
प्रथम तो ईस सुंदर सुत्र के लिए लावण्या जी को हार्दिक धन्यवाद!
'मेरे सपनो का भारत' के बारे में लिखने-कहने बैठे तो बहोत से मुद्दे है जो अभी छेड़ने बाकी है। लेकिन अभी सिर्फ शिक्षा के बारे में कहना चाहूंगा। क्वचित आप सब मेरे विचार से सहमत हो या न हो।
मेरे विचार से पीछले दस-पंद्रह वर्ष से शिक्षा एक बीझनेस बन गया है। पहले तो यह समझमें नहि आ रहा था लेकिन आएदिन खुल रही ईन्टरनेशल स्कूल्स ईस बात का सबुत है। छोटे मामलों मे देखें तो भी हमारे शहेरो की स्कूलो का भी अब यही मक्सद रह गया मालुम पड़ता है।
में अभी भी रोजगार सिखाने वाली शिक्षा से सहमन नहीं हो पा रहा हुं। बच्चों को बहोत सारी चीजॅं अच्छी लगती है जैसे चित्रकला, डान्स, विज्ञान, भुगोल-ईतिहास (डिस्कवरी चेनल की वजह से) लेकिन बिलकुल भी ज़रूरी नहि की उनकी यह 'शौख-ए-जिज्ञासा' हंमेशा के लिए हो! दस-पंद्रह साल के बाद बदल भी सकती है।
या हो सकता है की हम जिस चीझ में पारंगत हो वह चीझ की वेल्यु ही न रहे। हमे चाहिए के हम ईतने समर्थ हो की अपनी शुरूआत जीवन के कीसी भी स्टेज से फिर से शुरु कर सकें...खास कर के ईस बदलते रहते विकासमयी माहोल में।
मुझे लगता है के जो शिक्षा चल रही है वह बच्चों को हर विषय के बारे में अधिक से अधिक पारंगत बनाती है। हर विषय का ज्ञान होना हरएक युग में ज़रूरी रहेंगे। जैसे फिलहाल 'मल्टीटॅलेन्ट लोगो' का जमाना चल रहा है, हंमेशा एसे लोग देश-विदेशमें जानेमाने जाते है।
जहां तक रोज़गार का प्रश्न है, सरकार कि जिम्मेदारी है कि हर एक युवान को काम दिलवाए। युवानो को चाहीए कि अपने आप को सज्ज रखें, आने वाली किसी भी तक को वह न छोडें और धैर्य, खंत से लगे रहें।
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