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Old 14-04-2013, 08:39 PM   #4
jai_bhardwaj
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Default Re: 'दूसरी औरत' - कहानी - दुर्गादत्त जोशी

चाचा शादी के लिए औरत देखने में लग गए, जगह-जगह के आदमियों से चर्चा की, कुछ रिश्तेदारियों में संदेशा पहुँचवाया कि कहीं राजेश के लायक कोई औरत हो तो बताना, कुछ दिनों के बाद एक गाँव से खबर आई कि यहाँ एक ऐसी औरत रहती है, बड़े ही गरीब घर की है, बाप के पास कुछ नहीं है, अगर भगवान ने चाहा तो रिश्ता हो जाएगा, चाचा राजेश के साथ उसी गाँव में पहुँच गए जिन्होंने सन्देशा भिजवाया था उन्ही के घर रुके, नमस्कार कुशलक्षेम के बाद चाय पी।

थोड़ी देर बाद घर के मुखिया ने कहना शुरू किया, देखो राजेश बाबू आप ठहरे बड़े किसान कोशिश करोगे तो आपको कुँवारी कन्या मिल जाएगी थोड़ा बहुत दहेज भी मिल जाएगा, अभी आपकी उमर ही क्या है अब तो चालीस छोड़ो पैंतालिस साल के भी शादी कर रहे हैं, पर मैंने जो देखा है उसका जबाब नही, देखने में साँवली ज़रूर है, कद भी छोटा है, पर है बड़ी होशियार, अपने बाप को पाल रही है, हमारे ही बिरादरी के हैं, इसके दादा गलत सोहलत में पड़ गए थे, तमाम बुरे काम 'शराब, जुआ' सब सम्पत्ति बेचकर मरते समय कंगाल हो गए थे, आगे को एक लड़का था उसी का बाप हमारे खेतों में काम करता है। न पढ़ा न लिखा न ज़मीन और करता भी क्या बीबी पहले ही मर चुकी है, हमने रहने के लिए छोटा-सा मकान बनाकर दे दिया था, उसी में रहते हैं, मेरे कहने को टालेंगे नहीं कहो तो मैं लड़की और उसके बाप को बुला देता हूँ, और यह भी सुन लो हमने उसकी शादी भी करवा दी थी एक अच्छे परिवार में पति को पसंद नहीं आई, उसने छोड़ दिया, यहीं रहती है, इन्टर तक का कॉलेज है गाँव में इंटर तक पढ़ी है, अगर शहर में किसी सेठ के यहाँ पैदा हुई होती तो डॉक्टर बैरिस्टर होती। राजेश जी घर बनाने वाली है, सिलाई कढ़ाई करती है गाँव के बच्चों को घर पर पढ़ाती है, बड़ी शालीन है, किसी से कभी ज़ोर से बोली नहीं होगी, मैं अपनी लड़की समझता हूँ उसे। अगर आप राज़ी हो गए तो उस बेचारी की ज़िन्दगी सुधर जाएगी और आपका घर भी बन जाएगा।
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तरुवर फल नहि खात है, नदी न संचय नीर ।
परमारथ के कारनै, साधुन धरा शरीर ।।
विद्या ददाति विनयम, विनयात्यात पात्रताम ।
पात्रतात धनम आप्नोति, धनात धर्मः, ततः सुखम ।।

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