Re: एक लम्बी प्रेम कहानी
मैं उसके घर के पास ही बने एक कुंए से पानी लाता था। वहीं स्नान भी करता और इसी बहाने कुछ अधिक समय कुंए पर दे आता।
सिलसिला चल निकला और बहुत कुछ बदलने लगा। मन में रीना को पत्नी के रूप में पाने की उत्कण्ठ होने लगी। दसवीं की कक्षा में मैं था और रीना नवमी में। मन्नतें भी मंगता तो रीना को पत्नी के रूप में पाने की। लंबी कहानी है। फिर भी।
गांव मे किसान का बेटा था। बुआ को संतान नहीं थी सो मैं ही संतान के रूप में जाना जाता था। फूफा का हाथ बंटाना मेरा काम था। जिसके तहत शाम में भैंस चराना, चारा लाना, चारा काटना सभी शामील था। खेती के समय खेत का सारा काम करना। हल चलाना सभी कुछ ग्रामीण दिनचर्या में शामील था। पर यह सब करते हुए रीना की याद आ जाती या फिर दिख जाती तो काम करने का अंदाज बदल जाता। भैंस चराते वक्त यदि वह कहीं से गुजर जाती तो गाने की धुन मेरे मुंह से निकलने लगती। क्या कुछ नहीं हुआ बहुत कुछ याद नहीं। रीना मेरे घर आती बुआ से बात होती रहती और मैं भी उस बातचीत में शामिल हो जाता। बुआ कहती भी ‘आंय रे छौरा मौगा हो गेलही’। पर मुझे ज्यादा से ज्यादा समय रीना क साथ बिताना अच्छा लगता और जीवन में प्रेम हो तो जीवन सफल होता है। प्रेम की जिस बात को आज समझ पा रहा हूं उसे बचपन में नहीं समझ सका था पर हां एक कमी रहती थी हमेशा। यदि रीना नहीं दिखे तो लगता था कुछ छूट गया। और प्रेम में त्योहारों का आनंद भी बढ़ जाता था और बरबस ही बचपन की याद आ गई।
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आ नो भद्रा: क्रतवो यन्तु विश्वतः (ऋग्वेद)
(Let noble thoughts come to us from every side)
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