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Old 30-06-2021, 03:13 PM   #2
आकाश महेशपुरी
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Default Re: दहेज़ (कहानी)

आंशिक सम्पादन के बाद
दहेज़

आधी रात को बैगन के खेत में मचान पर सोये अकलू की नींद अचानक टूटी। कुछ जलने की गंध व सियारों का शोर सुनकर वह बुरी तरह सहम गया। खेत से कुछ दूरी पर नहर के किनारे उसे कुछ जलता हुआ दिखा, जिज्ञासा वश उसने उक्त स्थान पर जाने का निर्णय किया।

अकलू का दिल तेजी से धड़क रहा था, गला सूखता चला जा रहा था लेकिन वह भी चला जा रहा था गन्तव्य की ओर।
नहर के करीब पहुँचकर उसने जो देखा वह उसका लहू जमा देने के लिए काफी था। गाँव का मुखिया, उसका भाई और लड़का किसी की लाश जला रहे थे, एक पेड़ की ओट में खड़ा होकर अकलू यह सबकुछ देख ही रहा था कि मुखिया को अपनी ओर आता हुआ देखकर बुरी तरह सहम गया। अचानक मुखिया की नज़र उसपर पड़ी, वह दहाड़ा…’क्यों रे अकलुआ यहाँ क्या कर रहा है, वो भी इस वक्त! बोल क्या जानना चाहता है तू? बोल क्या जानना चाहता है वरना जान से मार दूँगा।’
‘मैं कुछ नहीं जानना चाहता मालिक!…आग जलता देखकर मैंने सोचा मेरे मछुवारे मित्र मछली पका रहें होंगें…यही सोच कर यहाँ आ गया कि मित्रों से साथ थोड़ी मस्ती हो जाएगी…!’
‘झूठ बोल रहा है तू, यहाँ मछुवारे आधी रात को क्यों आएंगे? यहाँ तो कोई दोपहर में भी नहीं आता।’
‘आते हैं मालिक! इसी नहर में मछलियाँ पकड़ते हैं, हिस्सा लगाते हैं और…पकाते भी हैं!’
‘माना कि तू आया था मछुवारों के पास! लेकिन जो कुछ तुमने देखा, वह किसी से नहीं बोलेगा। यदि बोला तो हम तेरा और तेरे परिवार का जीना हराम कर देंगे। चल भाग अब यहाँ से वरना यहीं जिंदा गाड़ दूँगा।’
अकलू भागते हुए अपने खेत में पहुँचा और मचान पर बैठकर सोचने लगा कि ‘जिस मुखिया को वह इतना दयालु और शरीफ समझता था वह कितना क्रूर निकला।’ उसके मन में देर तक तरह तरह के विचार आते रहे। मन के अधिक व्यथित होने पर वह घर की ओर चल दिया। घर पहुँचते ही उसे पता चला कि कुछ नकाबपोश लोग आए थे और उसके बेटे को जबरजस्ती उठा कर ले गए। पत्नी विलाप कर रही थी और गाँव के लोग बच्चे के बारे में तरह तरह की बातें कर रहे थे। यह सब देखकर अकलू का माथा घूम गया। बाहर लोगों की भीड़ थी जो अब धीरे धीरे कम हो रही थी, अकलू पत्नी का हाँथ पकड़ कर घर के भीतर ले गया और रात की पूरी घटना बताई। उसने पत्नी को कसम दी कि यह बात वह किसी से नहीं कहेगी, क्योंकि ऐसा करने से बच्चे की जान को खतरा था।
सुबह अकलू मुखिया के घर गया जहाँ मुखिया किसी से बात कर रहा था।
‘समधी जी! हम बहू के खो जाने से बहुत आहत हैं। हम सब यही समझ रहे थे कि वह आपके यहाँ गयी होगी, लेकिन यह जानकर की वह वहाँ नहीं है हम काफी आहत हैं। हम सब उसे ढूँढने में लगे हुए हैं आप उदास न हों सब ठीक हो जाएगा।’ मुखिया के चेहरे पर उम्मीद का बनावटी भाव था।
मुखिया के समधी का मन आशंकित हो उठा। वह इसकी सूचना थानाध्यक्ष को देने का मन बनाकर वहाँ से चल दिये।
समधी के जाने के बाद अकलू मुखिया के सामने उपस्थित हुआ। अकलू को देखते ही मुखिया आग-बबूला हो गया, लेकिन अपनी नाराजगी छुपाते हुए बोला-
‘क्या हुआ अकलू भाई! तुम्हारा बेटा गायब है क्या?’
‘मेरे बेटे को लौटा दीजिए मालिक! मैं जिंदगी भर अपना मुँह नहीं खोलूँगा।’
‘वाह! ये हुई न बात। काफी समझदार लगते हो, लेकिन तुम्हें तबतक तुम्हारा लौंडा नहीं मिलेगा जबतक मामला गरम है।’
‘मुझपर विश्वास कीजिये मालिक! मैं आपका विश्वास नहीं तोडूंगा। आप कहेंगे तो आजीवन आपकी गुलामी करूँगा, बस मेरे बेटे को छोड़ दीजिए।’
‘गुलामी तो तुम्हें करनी ही पड़ेगी, और जहाँ तक विश्वास का सवाल है वह तो मैं अपने बाप पर भी नहीं करता। अब जाओ यहाँ से मुझे बहुत काम है मेरा भेजा मत खाओ।’
‘चला जाऊँगा लेकिन पहले मेरे बेटे को छोड़ दीजिए मालिक! आपका राज, राज ही रहेगा यह मेरा वादा है।’
‘बदतमीज! मुझसे जबान लड़ाता है!’ मुखिया के लात खाकर अकलू के मुँह से खून निकलने लगा।
‘अरे मुखिया जी! क्यों मार रहे हैं इसे!’ पुलिस फोर्स के साथ आये थानाध्यक्ष ने सवाल किया।
मुखिया कुछ बोल पाता उसके पहले ही अकलू की हिम्मत जाग गयी। वह बोला ‘इस हरामखोर मुखिया ने मेरे बेटे का अपहरण करवाया है, मैं अपने बेटे के बारे में पूछ रहा हूँ तो मार रहा है।’ इसी दौरान मुखिया के समधी भी आ गए। अकलू ने रात में घटी सारी घटना थानाध्यक्ष को बताई। उसकी बातें सुनकर सभी दंग रह गए। पुलिस प्रशासन ने मुखिया के घर की तलासी ली तो अकलू का बेटा बेहोशी की हालत में मिला, शायद उसे नींद की दवाई खिलाई गयी थी। व्यापक तहक़ीक़ात से पता चला कि मुखिया ने अपनी बहू की हत्या इसलिए करवा दी थी कि बेटे की दूसरी शादी करवाकर दहेज़ में मोटी रकम वसूल सके।
इस दौरान लोगों की भीड़ इकट्ठी हो गयी थी, सबके सामने अपराधियों को गिरफ्तार कर लिया गया। ग्रामवासी अकलू की भूरि भूरि प्रशंसा कर रहे थे।

– आकाश महेशपुरी
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