Tyag
👉 माँ की मृत्यु के बाद तीसरा दिन था । घर की परंपरा के अनुसार,
मृतक के वंशज उनकी स्मृति में अपनी प्रिय वस्तु का त्याग किया करते थे।
मैं आज के बाद बैंगनी रंग नही पहनूँगा।” बड़ा बेटा बोला ।
वैसे भी जिस ऊँचे ओहदे पर वो था, उसे बैंगनी रंग शायद ही कभी पहनना पड़ता। फिर भी सभी ने तारीफें की।..
मँझला कहाँ पीछे रहता, “मैं ज़िदगी भर गुड़ नही खाऊँगा।”
ये जानते हुए भी कि उसे गुड़ की एलर्जी है, पिता ने
सांत्वना की साँस छोड़ी।
अब सबकी निगाहें छोटे पर थी। वो स्तब्ध सा माँ के चित्र को तके जा रहा था। तीनों बेटों की व्यस्तता और अपने काम के प्रति प्रतिबद्धता के चलते, माँ के अंतिम समय कोई नहीं पहुँच पाया था। सब कुछ जब पिता कर चुके, तब बेटों के चरण घर से लगे।
“मेरे तीन बेटे और एक पति, चारों के कंधों पर चढ़कर श्मशान जाऊँगी मैं।” माँ की ये लाड़ भरी गर्वोक्ति कितनी ही बार सुनी थी उसने और आज उसका खोखलापन भी देख लिया ।
“बोलिये समीर जी,” पंडितजी की आवाज़ से
उसकी तंद्रा भंग हुई।………
आप किस वस्तु का त्याग करेंगे अपनी माता की स्मृति में ?”
बिना सोचे वो बोल ही तो पड़ा था, “पंड़ितजी, मैं अपने थोड़े से काम का त्याग करूंगा, थोड़ा समय बचाऊंगा और अपने पिताजी को अपने साथ ले
जाऊंगा।”और पिता ने लोक-लाज त्यागकर बेटे की गोद में सिर दे दिया था।
👉 हमें उम्मीद है ये कहानी क्या सिखाती है , आप सभी समझ गये होंगे ..
फिर भी आखिर में दो लाइनें सभी युवा दोस्तों के लिये लिख रहा हूँ जिसे मैं खुद हमेशा अपने दिमाग में रखता हूँ ।
"अपने कीमती समय से थोड़ा समय अपने परिवार के लिये, बडे-बुजुर्गों के लिए भी निकालिये,क्योंकि शायद जब आपके पास समय होगा तब, आपके पास ये खूबसूरत सा परिवार नहीं होगा.."
Internet ke madhyam se
|