Re: जब गुरुदेव भी रो पड़े
[QUOTE=rajnish manga;560779]बहुत प्रेरक प्रसंग है. वास्तव में, महिलाओं के प्रति दूसरे दर्जे के नागरिकों जैसा व्यवहार करना और विधवाओं के प्रति अवहेलना दिखलाना, उन्हें बदनसीब कहना और उन्हें दुर्भाग्य का प्रतीक समझना इसका एक लंबा इतिहास है. दूसरे धर्मों में भी महिलाओं के प्रति पूर्वाग्रह होंगे परन्तु हिन्दू समाज 'यत्र नार्यस्तु पूज्यन्ते....' कह कर अपने कर्तव्य की पूर्ति हुई ऐसा मान लेते हैं. हज़ारों साल से बाल विधवाओं तथा अन्य विधवाओं को जो लांछन, प्रताड़ना, अवहेलना और [size=3][color=blue]सामाजिक बहिष्कार तक सहना पड़ा है, इस सब के लिए पंडे पुजारियों और समाज के ठेकेदारों द्वारा लगातार परोसी गयी और अब तक जारी दकियानूसी मानसिकता ही ज़िम्मेदार है. इस कुचक्र को तोड़ना और सभी पुराने जालों को काट फेंकना चंद सामाजिक सुधारकों के बस की बात नहीं है. इस मानसिकता को बदलने में बहुत समय लगेगा. लेकिन काम शुरू हुआ है तो परिणाम भी आयेंगे. धन्यवाद, बहन पुष्पा जी.
बहुत बहुत धन्यवाद भाई , जी इस हीन मानसिकता की जड़ें तो बेहद मजबूत है जिसे उखाड फेकना बहुत कठिन है क्यूंकि ये सब पुरातन काल से चला आ रहा है पर यदि अब सब अपने घर से शुरुवात करें तो कुछ हद तक इस कुप्रथा का समाधान संभव है
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