Re: श्रीयोगवशिष्ठ
शुद्ध वासना में जगत् का अत्यन्त अभाव निश्चय होता है । हे शिष्य! अज्ञानी की वासना जन्म का कारण होती है और ज्ञानी की वासना जन्म का कारण नहीं होती । जैसे कच्चा बीज उगता है और जो दग्ध हुआ है सो फिर नहीं उगता वैसे ही अज्ञानी की वासना रससहित है इससे जन्म का कारण है और ज्ञानी की वासना रसरहित है वह जन्म का कारण नहीं । ज्ञानी की चेष्टा स्वाभाविक होती है । वह किसी गुण से मिलकर अपने में चेष्टा नहीं देखता । वह खाता, पीता, लेता, देता, बोलता चलता एवम् और अन्य व्यवहार करता है पर अन्तःकरण में सदा अद्वैत निश्चय को धरता है कदाचित् द्वैतभावना उसको नहीं फुरती । वह अपने स्वभाव में स्थित है इससे उसकी चेष्टा जन्म का कारण नहीं होती । जैसे कुम्हार के चक्र को जब तक घुमावे तब तक फिरता है और जब घुमाना छोड़ दे तब स्थीयमान गति से उतरते उतरते स्थिर रह जाता है वैसे ही जब तक अहंकार सहित वासना होती है तब तक जन्म पाता है और जब अहंकार से रहित हुआ तब फिर जन्म नहीं पाता । हे साधो! इस अज्ञानरूपी वासना के नाश करने को एक ब्रह्मविद्या ही श्रेष्ठ उपाय है जो मोक्ष उपायक शास्त्र है । यदि इसको त्याग कर और शास्त्ररूपी गर्त्त में गिरेगा तो कल्पपर्यन्त भी अकृत्रिम पद को न पावेगा । जो ब्रह्मविद्या का आश्रय करेगा वह सुख से आत्मपद को प्राप्त होगा । हे भारद्वाज! यह मोक्ष उपाय रामजी और वशिष्ठजी का संवाद है, यह विचारने योग्य है और बोध का परम कारण है । इसे आदि से अन्तपर्यन्त सुनो और जैसे रामजी जीवन्मुक्त हो विचरे हैं सो भी सुनो । एक दिन रामजी अध्ययनशाला से विद्या पढ़के अपने गृह में आये और सम्पूर्ण दिन विचारसहित व्यतीत किया ।
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