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Old 03-09-2013, 12:10 PM   #33
rajnish manga
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Default Re: मेरी कहानियाँ / दत्तक पुत्र

बजरंगी लाला के क्रोध का यदि कोई शख्स बुरी तरह शिकार बना था तो वह वीजू था. वह जितनी देर तक दुकान में लाला जी के साथ रहता उसका मन अस्थिर रहता. शरीर स्वतः कांपता रहता. छोटी से छोटी बात भी बजरंगी लाला को कब कितना क्रोधित कर दे, कोई नहीं जानता था. बेचारा वीजू उनके सामने क्या बोल सकता था? वह तो जैसे शेर के सामने एक मेमना था, अतः हमेशा भयभीत रहता. पिता का प्यार क्या होता है उसने देखा ही न था.

एक दिन की बात है कि एक कटी हुई पतंग सामने वाली छत पर आ गिरी. संध्या समय जब दुकान बढ़ाने से पहले, बजरंगी लाला सामान अन्दर रख रहे थे, और वीजू से भी रखवा रहे थे, वीजू वहां से रफ़ू चक्कर हो गया. लाला बाहर आये तो तो हैरान! कहाँ गया लड़का? दो ही मिनट में वीजू पीछे हाथ बांधे हुये आ पहुंचा. लाला सातवें आसमान से बोले, “कहाँ गया था??”

“ प ..प... प..तंग ..”

अभी बेचारे के मुंह से पूरी बात भी न निकली थी कि लला ने उसको अपने बाएं हाथ से झकझोरते हए अपने निकट खींचा और दाए हाथ से ऐसा झन्नाटेदार तमाचा मारा कि वीजू लड़खड़ाता हुआ सड़क पे आ गिरा. पतंग की डोर उसके हाथ में ही रही.

वीजू को गिरते देख कर आसपास के कई दुकानदार भागकर आये और उसको सड़क से उठा कर बजरंगी लाला को बुरा भला कहने लगे.

“पागल हो गये हो क्या?”

“मार ही डालोगे बेचारे को ....?”

“छोटे बड़े का भी कोई ध्यान नहीं ...?”

“लाला ! अपनी उम्र का ख़याल तो रखो ...!”

“अपना नहीं है न .... अपना होता तो ...!”
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