Re: मेरी ज़िंदगी : मेरे शहर
मेरी ज़िंदगी : मेरे शहर / देहरादून
यह सन 1967 के आसपास की बात है जब मैंने देहरादून में डी.ए.वी. (पी.जी.) कॉलेज में दाखिला लिया था और वहां पढता था. मेरा कॉलेज करनपुर क्षेत्र में था. कुछ दिन हॉस्टल में रहने के बाद मैं उसी के नज़दीक किराए के मकान में रहने लगा था. वहां से पलटन बाजार और घंटाघर, जो इस शहर का केंद्रबिंदु थे, तकरीबन दो किलोमीटर दूर थे. मैं और मेरे मित्र प्रतिदिन घूमने के लिये पलटन बाजार जाया करते थे. पलटन बाजार देहरादून का एक खास बाजार था (और आज भी है) जहां सुबह से शाम तक व्यापारिक गतिविधियाँ चलती थीं. शाम के समय खरीदारों तथा घूमने आने वालों की यहाँ विशेष चहल-पहल रहा करती थी. देहरादून स्कूल-स्तर व कॉलेज-स्तर की शिक्षा सुविधाओं के मामले में बहुत प्रसिद्ध था. यही वजह थी कि हमारे कॉलेज समेत सभी कॉलेजों में न सिर्फ अन्य शहरों से बल्कि पंजाब, हरियाणा और हिमाचल तक से लड़के-लडकियां पढ़ाई के लिये आया करते थे. मेरे साथ के कई लड़के ऐसे थे जो नैनीताल से पढ़ने आये थे और तीन लड़के तो बिराटनगर (नेपाल) से भी आये हुये थे.
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आ नो भद्रा: क्रतवो यन्तु विश्वतः (ऋग्वेद)
(Let noble thoughts come to us from every side)
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