Re: खुशियों के पल
प्रकृति के खुले प्रांगण में उल्लास में भरा दिल खो जाना चाहता है- आसमान में पंछी बन कर, चांदनी को देख कर, शीतल पवन और झरने की मादक ध्वनि को सुन कर उनमे डूब जाना चाहता है. प्रकृति और मनुष्य का रिश्ता अनंत और अटूट है. हमारी जितनी भी कलाएं हैं, इसी रिश्ते को पुष्ट करती हैं. बहुत सुंदर कविता. इसे फोरम पर हम सब से शेयर करने के लिए आपका धन्यवाद, बहन पुष्पा जी.
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आ नो भद्रा: क्रतवो यन्तु विश्वतः (ऋग्वेद)
(Let noble thoughts come to us from every side)
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