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Originally Posted by rajnish manga
प्रकृति के खुले प्रांगण में उल्लास में भरा दिल खो जाना चाहता है- आसमान में पंछी बन कर, चांदनी को देख कर, शीतल पवन और झरने की मादक ध्वनि को सुन कर उनमे डूब जाना चाहता है. प्रकृति और मनुष्य का रिश्ता अनंत और अटूट है. हमारी जितनी भी कलाएं हैं, इसी रिश्ते को पुष्ट करती हैं. बहुत सुंदर कविता. इसे फोरम पर हम सब से शेयर करने के लिए आपका धन्यवाद, बहन पुष्पा जी.
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बहुत धन्यवाद भाई ... प्रोत्साहन से भरे शब्दों के साथ मेरी इस रचना को पसंद करने के लिए