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Old 01-03-2013, 06:42 PM   #29
jai_bhardwaj
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Default Re: कलियां और कांटे

कुछ पुत्र तुम्हारे भी होंगें, हम जैसे ही भोले-भाले !
क्या उन बच्चों के मुख पर भी, तुम बंद किया करते ताले !
हम साथ बैठ कर खेलेंगे, घर उन्हें हमारे ले आओ !
या चलो वही पर चलते हैं, घर अपना हमको दिखलाओ !
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किस कारन खून बहते हो, वह लिख कर हमको बतलाना !
जब बड़े बनेंगे हम आकर, वह चीज हमीं से ले जाना !
हीरा-मोती, सोना-चांदी, जो भी चाहोगे दे देंगे !
पर आज खेलने-पढ़ने दो, उस दिन जो चाहो ले देंगे !
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इतनी सी विनती है अंकल, आशा है इसे मान लोगे !
वह हंसी हमारे अधरों की, लौटेगी अगर ध्यान दोगे !
हम तुमसे कुट्टी कर लेंगे, जो बात नहीं मानी सुन लो !
अथवा जीने दो ख़ुशी-ख़ुशी, दो में से एक तुम्ही चुन लो !
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तरुवर फल नहि खात है, नदी न संचय नीर ।
परमारथ के कारनै, साधुन धरा शरीर ।।
विद्या ददाति विनयम, विनयात्यात पात्रताम ।
पात्रतात धनम आप्नोति, धनात धर्मः, ततः सुखम ।।

कभी कभी -->http://kadaachit.blogspot.in/
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