Re: (2)संक्षिप्त वाल्मीकि रामायण(अयोध्याकांड)
रामचन्द्र के वचन सुनकर अश्रुपूरित भरत बोले, "भैया! हमारे परम तेजस्वी धर्मपरायण पिता स्वर्ग सिधार गये। मेरी दुष्टा माता ने जो पाप किया है, उसके कारण मुझ पर भारी कलंक लगा है और मैं किसी को अपना मुख नहीं दिखा सकता। अब मैं आपकी शरण में आया हूँ। आप अयोध्या का राज्य सँभाल कर मेरा उद्धार कीजिये। सम्पूर्ण मन्त्रिमण्डल, तीनों माताएँ, गुरु वसिष्ठ आदि सब यही प्रार्थना लेकर आपके पासे आये हैं। मैं आपका छोटा भाई हूँ, पुत्र के समान हूँ, माता के द्वारा मुझ पर लगाये गये कलंक को धोकर मेरी रक्षा करें।"
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