Re: श्री कृष्ण-गीता (हिन्दी पद्द-रूप में)
क्षात्र-धर्म
भगवान-
अर्जुन, कुछ सोच-विचार जरा
निज धर्म की ओर निहार जरा
यह कायरता है पाप घोर
वीरों के हित अभिशाप घोर
रणवीरों के हित स्वर्ग-द्वार
है प्राप्त न होता बार-बार
ऐसा अवसर अर्जुन महान
पाते हैं केवल भाग्यवान
यदि तू यह अवसर छोड़ेगा
यदि तू रण से मुँह मोड़ेगा
तू अपनी इज्जत खो देगा
तू अपना धर्म डूबो देगा
तू खुद को पाप लगा लेगा
मन को संताप लगा लेगा
संसार तुझे धिक्कारेगा
कह कायर-नीच पुकारेगा
तेरा अपयश घर-घर होगा
तेरा अपयश दर-दर होगा
अपयश होता मृत्यु-समान
कब सह सकते हैं नर महान
तू कष्ट बहुत हीं पाएगा
तू जीते-जी मर जाएगा
रण में आएगा अगर काम
मर कर पाएगा स्वर्ग-धाम
यदि जीत समर तू जाएगा
तो राज धरा का पाएगा
हार और जीत दोनों समान
इसलिए युद्ध हीं श्रेष्ठ जान
यह कायरता है पाप बड़ा
उठ लड़ने को हो पार्थ खड़ा
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