Re: श्री कृष्ण-गीता (हिन्दी पद्द-रूप में)
कर्म-योग
भगवान-
अब तक बतलाया ज्ञान-योग
अब तक समझाया ज्ञान-योग
अब कर्म-योग बतलाता हूँ
इस पथ में कहीं न बाधा है
यह पथ अति सीधा-सादा है
अर्जुन, जो यह पथ अपनाए
दुख उसके पास नहीं आए
कर्मों में कोई पाप नहीं
कर्मों से हो संताप नहीं
कर्मों से इज्जत-नाम मिले
कर्मों से सुख-आराम मिले
कर्मों से पुण्य कमाते नर
कर्मों से सब कुछ पाते नर
इसलिए कर्म तू करता चल
कर्मों के पथ पर तू चलता चल
कर्मों में कहीं नहीं दुख है
कर्मों में कहीं नहीं सुख है
फ़ल हीं में दुख रहता, अर्जुन
फ़ल हीं में सुख रहता, अर्जुन
जो फ़ल की चिन्ता करता है
सुख-दुख में वह ही पड़ता है
मूर्ख हीं फ़ल की चिन्ता करते
सुख-दुख के बंधन में पड़ते
जो नर होते हैं समझदार
वे नहीं करें फ़ल का विचार
नर तो बस कर्म किया करता
फ़ल मैं हीं सदा दिया करता
हैं सभी कर्म तेरे अधीन
हो कभी नहीं तू कर्महीन
फ़ल का कर कभी विचार नहीं
फ़ल पर तेरा कोई अधिकार नहीं
उठ कर्महीनता त्याग पार्थ
उठ मोह-नींद से जाग पार्थ
जो नर फ़ल में ही लीन रहे
वह दीन, सदा हीं दीन रहे
जो फ़ल का कभी न ध्यान धरे
निश्चिंत हुआ जो कर्म करे
दुख उसके निकट नहीं आए
अर्जुन, वह भटक नहीं पाए।
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