Re: ~!!चन्द्रकान्ता!!~
तेजसिंह उसी वक्त तहखाने की तरफ रवाना हुए और सवेरा होने के पहिले ही लौट आये। सुबह को जब कुमार सोकर उठे तो तेजसिंह से पूछा, ‘‘कहो तहखाने का क्या हाल है ?’’ उन्होंने जवाब दिया, ‘‘कैदी तो निकल गये मगर ताले का बन्दोबस्त कर आया हूँ।’’
नहा-धोकर कुछ खाकर कुमार को तेजसिंह दरबार ले गये। महाराज को सलाम करके दोनों आदमी अपनी-अपनी जगह बैठ गये। आज जासूसों ने खबर दी कि शिवदत्त की फौज और पास आ गई है, अब दस कोस पर है। कुमार ने महाराज से अर्ज किया, ‘‘अब मौका आ गया है कि मुसलमानों की फौज दुश्मनों को रोकने के लिए आगे भेजी जाये।’’ महाराज ने कहा, ‘‘अच्छा भेज दो।’’ कुमार ने तेजसिंह से कहा, ‘‘अपना एक तोपखाना भी इस मुसलमानी फौज के पीछे रवाना करो।’’ फिर कान में कहा, ‘‘अपने तोपखाने वालों को समझा देना कि जब फौज की नीयत खराब देखें तो जिन्दा किसी को न जाने दें।
तेजसिंह इन्तजाम करने के लिए चले गये, हरदयालसिंह को भी साथ लेते गये। महाराज ने दरबार बर्खास्त किया और कुमार को साथ ले महल में पधारे। दोनों ने साथ ही भोजन किया, इसके बाद कुमार अपने कमरे में चले गये। छटपटाते रह गये मगर आज भी चन्द्रकान्ता की सूरत न दिखी, लेकिन चन्द्रकान्ता ने आड़ से इनको देख लिया।
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