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Originally Posted by ndhebar
अश्क भी अब सहमें से पलकों मे छुपे रहते हैं,
मेरी तरह ये भी तनहाई और घुटन सहते हैं,
डरतें है कि कहीं देख ना ले इन्हे कोई,
निकलना चाहते हैं पर मजबूरीयों में बंधे रहते हैं|
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2 लाइन में ग़ज़ल लिख डाली |
काफी दिनों बाद इतनी सटीक और असर करने वाली चीज़ पढ़ी भाई |