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Originally Posted by jai_bhardwaj
पुंडीर जी, हार्दिक अभिवादन।
मैं इस विषय में अधिक जानकारी के लिए लालायित हूँ। मैं गलत भी हो सकता हूँ किन्तु मैंने उपरोक्त भाषा में तांत्रिक मन्त्र देखे हैं जिनमे अपने गुरु अथवा किसी अन्य ज्ञानी पुरुष के आदेश को उद्धृत किया जाता है और कई मन्त्रों में तो इन्हें आहूत भी किया जाता है ... ये सात्विक मन्त्र नहीं। ये झाड-फूँक के लिए प्रयुक्त होने वाले मन्त्र प्रतीत होते हैं। हाँ यह सच है कि ये मन्त्र भी सिद्ध करने के बाद ही प्रयुक्त किये जा सकते हैं। ये स्वघाती भी होते हैं।
मेरे विचार से सूत्र की प्रथम प्रविष्टि में आपको एक सूचना अवश्य चिपका देनी चाहिए कि " सदस्य इन मन्त्रों को प्रयुक्त करने से पूर्व योग्य और प्रशिक्षित गुरु का सानिध्य अवश्य प्राप्त करें। किसी भी प्रकार के दैहिक, मानसिक और आर्थिक संताप के लिए मंच दोषी नहीं होगा।"
मेरे विचारों से सहमत होना आवश्यक नहीं है। धन्यवाद।
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भारद्वाज जी, इस सूत्र में दिये सभी मन्त्र हानिरहित तथा निरापद हैं, ये शान्तिकारक तथा पौष्टिक मन्त्र हैं ।
सर्वप्रथम तो यह विषय आस्था से जुड़ा होने के कारण सर्व-साधारण इन मन्त्रों का उपयोग ही नहीं करता है तथा जो उपयोग करते हैं, उनको मन्त्र विज्ञान का साधारण ज्ञान होता ही है ।
हालांकि कहा गया है "गुरु बिना ज्ञान नहीं होता", लेकिन माना जाता है की भगवान् दत्तात्रेय ने जिसके भी ज्ञान अर्जित किया (यहाँ तक की किसी भी जन्तु की विशेष क्रिया या विशेषता को अपना कर) उसे गुरु माना । एकलव्य तो गुरु-मूर्ति को ही गुरु मान कर सर्व-श्रेष्ठ धनुर्धर बन गया । मन्त्र विज्ञान में शाम्भवी-दीक्षा के अनुसार यदि योग्य गुरु न मिले तो भगवान् शिव को गुरु मानकर दीक्षा ग्रहण कर मन्त्र का पुरश्चरण किया जा सकता है ।
एतद् विषय आस्था व विश्वास से सम्बन्धित है तथा मेरे द्वारा प्रस्तुत सभी मन्त्र हानिरहित व निरापद हैं । इन मन्त्रों से किसी भी प्रकार का अहित नहीं होता, अगर आस्था व विश्वास के साथ साधना नहीं की गई है, तो कोई फल ही नहीं है तथा फल है तो वह भी सकारात्मक ।