Re: ये कैसी भक्ति है ?
[QUOTE=internetpremi;555847]एक चुटकुला :
गरीबों और अमीरों के बीच क्या अन्तर है?
उत्तर: गरीब मन्दिर के बाहर भीख माँगते हैं और अमीर मन्दिर के अन्दर।
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आपके विचारों से सहमत हूँ।
मेरी राय में भी, दूध, नारियल, चावल, घी, वगैरह की बरबादी नहीं होनी चाहिए
चाहे तो शास्त्रों की औपचारिकताएं पूरी करने के लिए, एक या दो चमच दूध/घी/शहद वगैरह प्रसाद चढाकर, बाकी मन्दिरों में गरीब भक्तों मे बाँट दिया जाए.
यू एस ए में मन्दिर बहुत कम हैं और भीड भी बहुत कम। पर साफ़ होते हैं और भक्तों की अनुशासन में कोई कमी नहीं।
यहाँ भारत में कई मन्दिरों में जाने में मुझे हिचक होती है। यू एस ए में खुशी खुशी से जाता हूँ
बहुत बहुत धन्यवाद विश्वनाथ जी इस सूत्र पर आपने अमूल्य विचार रखने के लिए .. भक्ति अछि है किन्तु उसके अतिरेक से भगवन को कष्ट न हो ये भी हमें देखना चाहिए हम जानते हैं की हमारे शास्त्रों में पूजा के लिए कई नियम है तो भावुक होकर उस नियमो का उल्लंघन करना कदापि उचित नहीं लगता मुझे हमारे ऋषि मुनियों ने शायद इसी वजह से नियम बनाये हैं किन्तु आज के समय में इंसान बस भाग रहा है हर बात में उसे जल्दी है पूजा भी करनी है उसे और समय भी नहीं एइसे समय में या तो मंदिरे में जाकर भगवन पर नारियल न फेके या फिर आपने घर में शांति से पूजा करे क्यूंकि भगवन तो हर जगह है जरुरत है तो सिर्फ सच्चे दिल से उन्हें पुकारने की १५ रूपए के एक नारियल या १०० तोले सोने की चैन से ही भगवन रिझते हैं एइसा तो नहीं न ?
रही बात विदेशो की तो वहां जनसँख्या कम होने की वजह से और साक्षरता की वजह से लोग अनुशासन में रहते हैं . हमारे यहाँ लोगो के मन भावुकता से भरे होते हैं और आपनी भावुकता में वो पूजा के नियम भूल जाते हैं.. शायद इसलिए ही भगवान भी सब सह लेते हैं
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