Re: पंचतंत्र कहानिया व अन्य कथाये
“हवा खाने के लिए! मैं केवल हवा खाकर जिंदा रहता हूं। मुझे खाना खाने की जरुरत नहीं पडती। मेरे तप का बल हवा को ही पेट में भांति-भांति के पकवानों में बदल देता हैं।” सियार बोला।
उसकी इस बात को सुनकर चूहों पर जबरदस्त प्रभाव पडा। अब सियार की ओर से उनका सारा भय जाता रहा। वे उसके और निकट आ गए। अपनी बात का असर चूहों पर होता देख मक्कार सियार दिल ही दिल में खूब हंसा। अब चूहे महातपस्वी सियार के भक्त बन गए। सियार एक टांग पर खडा रहता और चूहे उसके चारों ओर बैठकर ढोलक, मजीरे, खडताल और चिमटे लेकर उसके भजन गाते।
सियार सियारम् भजनम् भजनम।
भजन किर्तन समाप्त होने के बाद चूहों की टोलियां भक्ति रस में डूबकर अपने बिलों में घुसने लगती तो सियार सबसे बाद के तीन-चार चूहों को दबोचकर खा जाता। फिर रात भर आराम करता, सोता और डकारें लेता।
सुबह होते ही फिर वह चूहों के बिलों के पास आकर एक टांग पर खडा हो जाता और अपना नाटक चालू रखता। धी चूहों की संख्या कम होने लगी। चूहों के सरदार की नजर से यह बात छिपी नहीं रही। एक दिन सरदार ने सियार से पूछ ही लिया “हे महात्मा सियार, मेरी टोली के चूहे मुझे कम होते नजर आ रहे हैं। ऐसा क्यों हो रहा हैं?”
सियार ने आर्शीवाद की मुद्रा में हाथ उठाया “हे चतुर मूषक, यह तो होना ही था। जो सच्चे मन से मेरी भक्ति लरेगा, वह सशरीर बैकुण्ठ को जाएगा। बहुत से चूहे भक्ति का फल पा रहे हैं।”
चूहो के सरदार ने देखा कि सियार मोटा हो गया हैं। कहीं उसका पेट ही तो वह बैकुण्ठ लोक नहीं हैं, जहां चूहे जा रहे हैं?
चूहों के सरदार ने बाकी बचे चूहों को चेताया और स्वयं उसने दूसरे दिन सबसे बाद में बिल में घुसने का निश्चय किया। भजन समाप्त होने के बाद चूहे बिलों में घुसे। सियार ने सबसे अंत के चूहे को दबोचना चाहा।
चूहों का सरदार पहले ही चौकन्ना था। वह दांव मारकर सियार का पंजा बचा गया। असलियत का पता चलते ही वह उछलकर सियार की गर्दन पर चढ गया और उसने बाकी चूहों को हमला करने के लिए कहा। साथ ही उसने अपने दांत सियार की गर्दन में गढा दिए। बाकी चूहे भी सियार पर झपटे और सबने कुछ ही देर में महात्मा सियार को कंकाल सियार बना दिया। केवल उसकी हड्डियों का पिंजर बचा रह गया।
सीखः ढोंग कुछ ही दिन चलता हैं, फिर ढोंगी को अपनी करनी का फल मिलता ही हैं।
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