Re: श्री अटल जी की कविताएँ :.........
मैं सोचता हूँ कि यहाँ अटल जी के जीवन से जुड़े कुछ प्रसंग देना अप्रासंगिक न होगा. जैसा कि हम सब जानते हैं कि अटलजी की वक्तृता के कायल बड़े बड़े लोग थे. लोग दूर दूर से उनका भाषण सुनने के लिये सभाओं में जाया करते थे. इसी सन्दर्भ में हम आपको कुछ महत्वपूर्ण बातें बताना चाहते हैं.
अटल जी के अनुसार उन्होने अपना पहला भांषण पाँचवी कक्षा में आयोजित एक वाद-विवाद प्रतियोगिता में दिया था। जहाँ अटक-अटक कर बोलने की वजह से उनकी बहुत हँसाई हुई थी। दरअसल तब वे अपना भाषंण रट कर गये थे। दृणसंक्लप अटल जी ने तभी ये निश्चय किया कि अब कभी भी रटकर भांषण नही बोलेगें। उनकी दृणसंक्लपता का ही परिणाम है कि उनके भाषणों को सुनने दूर-दूर से लोग आते हैं।
एक बार इलाहाबाद विश्वविद्यालय में राष्ट्रीय स्तर की वाद-विवाद प्रतियोगिता का आयोजन था। अटल जी एवं रघुनाथ सिंह इस प्रतियोगिता में भाग लेने जा रहे थे। परन्तु ट्रेन लेट हो जाने की वजह से वो लोग, प्रतियोगिता समाप्त होने पर वहाँ पहुँचे। उस समय निर्णायक मंडल निर्णय तैयार कर रहे थे। परेशान हुए बिना अटल जी ने ट्रेन लेट होने की बात अध्यक्ष महोदय को बताई, महोदय ने उन्हे बोलने की इजाजत दे दी। अटल जी ने अपनी परिमार्जित और काव्यात्मक शैली में ऐसा उत्कृष्ट भाषण दिया कि उन्हे सर्वप्रथम वक्ता होने का पुरस्कार प्राप्त हुआ। उस निर्णायक मंडल में डॉ. हरिवंश बच्चन जी भी थे।
अटल जी की वाकपटुता का एक और प्रसंग है। “एक बार वाद-विवाद का विषय था,‘हिन्दी राष्ट्रभाषा होनी चाहिए’। अटल जी पक्ष के वक्ता थे और उनका जोङीदार विपक्ष का जिसे हिन्दी की जगह हिन्दुस्तानी का पक्ष लेना था। परन्तु ऐन वक्त पर उनके जोङीदार ने कहा कि, अटल में तो पक्ष में बोलने की तैयारी करके आया हुँ। विचलित हुए बिना अटल जी ने कहा कोई बात नही, आप पक्ष में बोल दीजीए। अटल जी बिना किसी तैयारी के प्रतिपक्ष के विषय पर बोले। उनके आत्मविश्वास का आलम ये था कि वे उस प्रतियोगिता में प्रथम स्थान से पुरस्कृत हुए।“
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आ नो भद्रा: क्रतवो यन्तु विश्वतः (ऋग्वेद)
(Let noble thoughts come to us from every side)
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