Re: कहीं की ईंट .. कहीं का रोड़ा
दो दिन जुटेंगे मज़ार पर तेरे चाहने वाले
दिन चार चक्कर लगायेंगे दुआ मांगने वाले
सूखे फूल और सूखे अश्क फकत बाकी रहेंगे
कुछ कबूतर के सुफेद जोड़े तेरे साथी रहेंगे
होकर पत्थरो की कैद में तू आज़ाद रहेगा
मंज़र यही तेरी कब्र पर तेरे बाद रहेगा
जीतेजी जो एक दिल भी रोशन किया तूने
वो नूर इस जहाँ में तेरे बाद रहेगा
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