Re: पानी और पर्यावरण
प्रसिद्ध गीतकार और गजलकार श्री चन्द्रसेन ‘विराट’ का एक गीत है, ‘‘सच मेंजीवन का हैं, जीवन पानी’’ और अपने इस गीत में कविवर ‘विराट’ ने बड़ी गहरीचोट आज के मानव जगत पर की है, जिसे मैं यहाँ उद्धृत करना चाहता हूँ।
‘‘मानते सब हैं कि अमरित पानी
देह के दीप का है घृत पानी
दिव्य होकर भी मनुष्यों द्वारा
आह, कितना है निरादृत पानी’’
अपने इस छन्द में जब गीतकार ‘विराट’ लिखते हैं- ‘देह के दीप का हैं घृतपानी’ तो विज्ञान-सम्मत सच्चाई पाठक के सामने तैरने लगती है और जब वे ‘आह’ के साथ ‘कितना है निरादृत पानी’ कहते हैं, तो लगता है कि ‘सगर के पुत्रोंका उद्धार करने स्वर्ग से धरती पर उतर कर आई जीवनदायिनी ‘गंगा’ की घनीभूतपीड़ा को वाणी दे रहे हैं।
अपने इसी गीत के अन्तिम छन्द में गीतकार श्री चन्द्रसेन ‘विराट’ विश्व केउन सभी मनुष्यों को एक चेतावनी देते हैं, जिन्होंने पर्यावरण से निरन्तरखिलवाड़ करके विश्व-मानवता को विनाश के कगार पर ले जाकर खड़ा कर दिया है।कवि ‘विराट’ की अत्यन्त मार्मिक और सामयिक चेतावनी सच में जन-मानस की आसन्तचिन्ता ही बन गई है-
‘‘जानकर ढोला है बेजा पानी
गर वरूण ने नही भेजा पानी
एक इक बूँद को तरसेगी सदी
आपने गर न सहेजा पानी’’
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आ नो भद्रा: क्रतवो यन्तु विश्वतः (ऋग्वेद)
(Let noble thoughts come to us from every side)
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