Re: साहित्यकारों के विनोद प्रसंग
हिंदी के पितामह का एक चुटकुला
भारतेंदु हरिश्चंद्र अपनी पत्रिका ‘श्रीहरिश्चंद्र चंद्रिका’ में चुटकुले प्रकाशित किया करते थे। प्रस्तुत है उस जमाने की भाषा में एक चुटकुला-
एक नवयौवना सुंदरी चतुर चरफरी वसंत ऋतु में अपनी बहनेली के यहां गई और कुछ इधर उधर की मन लगन की बातें कर रही थी कि प्यासी हुई और पानी मांगा। इसकी उस मुंहबोली बहन ने कोरे कुल्हड़े में पानी भरकर ला दिया जो इसने मुह लगाकर पिया तो कुल्हड़ा होठों से लग रहा। वह खिलखिला कर हंसी और इस दोहे को पढ़ने लगीः
रे माटी के कुल्हड़ा, तोहे डारों पटकाय।
होंठ रखे हैं पीउ, तू क्यों चूसे जाय।।
यह सुन उसकी बहनेली ने कुल्हड़े की ओर से उत्तर दियाः
लात सही मूंकी सही उलटे सहे कुदार।
इन होठन के कारने सिर पर धरे अंगार।।
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दूसरों से ऐसा व्यवहार कतई मत करो, जैसा तुम स्वयं से किया जाना पसंद नहीं करोगे ! - प्रभु यीशु
Last edited by Dark Saint Alaick; 20-10-2011 at 08:47 PM.
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