Re: लघुकथाएँ
परिश्रम का फल
एक था कौआ। बिलकुल उस प्राचीन कथा वाले कौए के समान। जिसमें प्*यासा कौआ पानी पीने के लिए मिट्*टी के बर्तन में स्*थित पानी ऊपर लाने के लिए चोंच में कंकड़ दबाकर लाता है। कंकड़ बर्तन में डालता है। अपने अथक परिश्रम के पश्*चात पानी ऊपर आने पर पीकर उड़ जाता है।
लेकिन इस बार ऐसा नहीं हुआ। गाँव के गरीब भोले भाले एक कौये ने अपने परिश्रम के द्वारा मिट्*टी के बर्तन को छोटे-छोटे कंकड़ो से भरा। बर्तन में पानी ऊपर आने पर एक अन्*य राजनीति के ज्ञाता, चालाक और तिकड़मी कौये ने बल पूर्वक उसे डरा धमका कर बर्तन को अपने कब्*जे में ले लिया। उसका पूरा जल पीकर अपनी प्*यास बुझाई।
उड़ने से पूर्व मिट्*टी के पात्र को तिपाई से गिराकर टुकड़े-टुकड़े कर दिया।
पहले कौआ अब भी प्*यास से तड़प रहा है।
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मैं क़तरा होकर भी तूफां से जंग लेता हूं ! मेरा बचना समंदर की जिम्मेदारी है !!
दुआ करो कि सलामत रहे मेरी हिम्मत ! यह एक चिराग कई आंधियों पर भारी है !!
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