[QUOTE=amit_tiwari;25252]
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Originally Posted by Kumar Anil
अरे भाई तेजी ने छपा था मात्र, ये रामधारी सिंह दिनकर जी की रचना है, उसके बाद वाली देवेन्द्र सिंह की है |
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यह दोनों कविता मैंने amit_tiwari के लिए यहाँ छापी थी. और मेनू लगता है वो इसका मतलब अच्छी तरह समज गए है
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निशाँत जी के सूत्र चरित्रहीन के मामिँक विश्लेषण मे डूबने के लिए उसके साथ तादात्म्य स्थापित करने के लिए मैँ प्रायः हर दूसरे तीसरे उसे पढ़ता अवश्य हूँ मगर आज वो अनर्गल प्रलाप भरे सूत्रोँ के धक्के खाकर अन्तिम पृष्ठ पर अपनी नियति पर आँसू बहा रहा है ।
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पर्वतारोही poem.
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कतिपय सदस्योँ को अपनी पोस्ट मेँ अप्रासंगिक रूप से ही ही हा हा मात्र लिखकर प्रविष्टि बढ़ाते हुए पाया
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हम जीवन के महाकाव्य हैं poem.