Re: कन्या का जन्म एक त्रासदी नहीं
बेटी बचाने की हकीकत और हमारी संवेदनहीनता
आलेख आभार: डॉ. मोनिका शर्मा
जिस समाज की सोच इतनी असंवेदनशील है कि बेटियों को जन्म ही ना लेने दे वहां उन्हें शिक्षित, सशक्त और सुरक्षित रखनेे के दावे तो दावे भर ही रह जाते हैं। हाल ही में आई एक रिर्पोट ने इस ज़मीनी हकीकत से हमें फिर रूबरू करवा दिया है कि हम लिंग अनुपात के संतुलन को बनाये रखने के लिए कितने चिंतित हैं? महिलाओं को लेकर हमारी सोच और संवेदनशीलता में क्या बदला है ? संम्भवत कुछ भी नहीं । तभी तो देश के सबसे बड़े सर्वे के नतीजों में यही परिणाम सामने आया हैै कि भारत में चार साल तक की लड़कियों का ताज़ा लिंगानुपात मात्र 914 है । समय-समय पर सामने वाली ऐसी रिपोर्ट्स और आँकड़े पढ़कर- देखकर मन मस्तिष्क सोचने को विवश हो जाता है । ना जाने क्यों ऐसा लगता है कि मानसिकता वहीँ की वहीँ है । बेटियों का जीवन सुरक्षित हो और वे सशक्त बनें यह समग्र रूप से देखा जाये तो हकीकत काम फ़साना ज़्यादा लगता है ।
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आ नो भद्रा: क्रतवो यन्तु विश्वतः (ऋग्वेद)
(Let noble thoughts come to us from every side)
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