Re: पानी और पर्यावरण
नवगीतकार डॉ. ओम प्रकाश सिंह ने अपने कई गीतों में ‘पर्यावरण की चिन्ता’ कोबखूबी उकेरा है। उनके एक नवगीत का छन्द, मैं उदधृत करना चाहूँगा, जिसमेंगीतकार ने लक्षणा के माध्यम से अपनी बात कही है।
‘‘प्यासी आँखे,
प्यासे पनघट,
प्यासे ताल-तलैया!
बिना पानी के,
यह जिन्दगानी,
काँटों की है शैय्या!
आँख-मिचौनी
करने आए
बौराए बादल!!’’
महानगरों की विभीषिका का सजीव चित्रण इस नव-गीत की उक्त पंक्तियों में पाठकदेख सकते हैं। ‘काँटों की शैय्या’ और ‘बौराए बादल’ की लक्षणा से कवि की ‘पर्यावरण-चिन्ता’ मुखर हो उठी है।
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आ नो भद्रा: क्रतवो यन्तु विश्वतः (ऋग्वेद)
(Let noble thoughts come to us from every side)
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