Re: महाभारत के अनसुलझे रहस्य जो आज भी हैं बरकर
महान योद्धा बर्बरीक
बर्बरीक महान पांडव भीम के पुत्र घटोत्कच
और नागकन्या अहिलवती के पुत्र थे। कहीं-
कहीं पर मुर दैत्य की पुत्री 'कामकंटकटा' के
उदर से भी इनके जन्म होने की बात कही गई है।
महाभारत का युद्ध जब तय
हो गया तो बर्बरीक ने भी युद्ध में सम्मिलित
होने की इच्छा व्यक्त की और मां को हारे हुए
पक्ष का साथ देने का वचन दिया। बर्बरीक
अपने नीले रंग के घोड़े पर सवार होकर तीन बाण
और धनुष के साथ कुरुक्षेत्र
की रणभूमि की ओर अग्रसर हुए।
बर्बरीक के लिए तीन बाण ही काफी थे जिसके
बल पर वे कौरव और
पांडवों की पूरी सेना को समाप्त कर सकते थे।
यह जानकर भगवान कृष्ण ने ब्राह्मण के वेश में
उनके सामने उपस्थित होकर उनसे दान में
छलपूर्वक उनका शीश मांग लिया।
बर्बरीक ने कृष्ण से प्रार्थना की कि वे अंत
तक युद्ध देखना चाहते हैं, तब कृष्ण ने
उनकी यह बात स्वीकार कर ली। फाल्गुन मास
की द्वादशी को उन्होंने अपने शीश का दान
दिया। भगवान ने उस शीश को अमृत से सींचकर
सबसे ऊंची जगह पर रख दिया ताकि वे
महाभारत युद्ध देख सकें। उनका सिर
युद्धभूमि के समीप ही एक पहाड़ी पर रख
दिया गया, जहां से बर्बरीक संपूर्ण युद्ध
का जायजा ले सकते थे।
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ज्ञान का घमंड सबसे बड़ी अज्ञानता है, एंव अपनी अज्ञानता की सीमा को जानना ही सच्चा ज्ञान है।
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