Re: प्रणय रस
घिरे काजल मेघ मन स्वप्निल हुआ है
रेशमी एहसास ने मनो छुवा है
सुखद पुरवा , वृष्टि
बदरौखा उजाला
ज्यों झुका चेहरा
बिखरे प्रीत हाला
इस सूरा से फिर खुमारी - तन हुआ है
रेशमी एहसास ने मानो छुवा है
रिमझिम रवगान
मेघों का बरसना
गंध सोंधी - सिक्त माती का
परसना
लगा बाँहों ने तुम्हारी छवि छुवा हो
रेशमी एहसास मानों छुवा हो
मेह के जल से अटारी बनी झरना
सब लुटाकर प्यास
ज्यों चाहे हर्षना
हर्ष चाहे प्यास मन पारा हुआ है
रेशमी एहसास मानो छुवा है
कौंधती बिजली की जैसे याद आये
विवश मन बौछार से बस भीग जाये
अनमना फिर हो गया द्रग का सुवा है
रेशमी एहसास मानो छुवा है |
साभार :- शशि भूषण अवस्थी
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