Re: महाभारत के पात्र: कर्ण
महाभारत के पात्र: कर्ण
मेरे बालपन में एक बार महारानी कुंती हमारे घर आई। मेरी माँ को अपनी सखी बताती थी। विशेष रूप से मुझे से मिलीं। मुझे गोद में बैठा कर प्यार किया। पर उनकी नयन अश्रुपूर्ण क्यों हैं? मेरा बाल मन समझ नहीं पाया। वे मेरे लिए वस्त्र और उपहार क्यों लाईं थीं? मैंने द्वार के ओट से छुप कर सुना। वे मेरी भोली राधा माता से कह रहीं थी –“ राधा, तेरा यह पोसपुत्र आवश्य किसी उच्च गृह का परित्यक्त संतान है। प्रेम से इसका पालन पोषण करना। सब ने उनके महानता और सरलता की प्रशंसा की। राज परिवार की पुत्रवधू निष्कपट भाव से सूत पत्नी से मित्रता निभा रहीं हैं। एक अनाथ, अनाम बालक पर स्नेह वर्षा कर रहीं थीं। तब किसी के समझ में नहीं आया कि परित्यक्त पुत्र के मोह और मन के अपराध बोध ने उन्हें यहाँ आने के लिए बाध्य किया था।
बचपन से पांडव मुझे निकृष्ट सूत पुत्र मान कर अपमानित करते आए हैं। भीम हर वक्त मेरे उपहास करता रहा है। अर्जुन मेरी श्रेष्ठता को जान कर भी अस्वीकार करता रहा है। आश्रम के गुरुजन भी राजपुत्रों के सामने मुझे सूत पुत्र कह अपमानित करते हैं। पूरे संसार में धर्म की रक्षा करने के लिए जाना जाने वाला युधिष्ठिर यह सब अन्याय देख कर हमेशा मौन रहे।
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आ नो भद्रा: क्रतवो यन्तु विश्वतः (ऋग्वेद)
(Let noble thoughts come to us from every side)
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