Re: शायरी में मुहावरे
मैं शिकार हूँ किसी और का
ऋतेश त्रिपाठी
मैं शिकार हूँ किसी और का मुझे मारता कोई और है,
मुझे जिसने बकरी बना दिया वो भेड़िया कोई और है ।
कई सर्दियॉ भी ग़ुज़र गईं मैं उसके काम न आ सका,
मैं लिहाफ़ हूँ किसी और का मुझे ओढ़ता कोई और है।
मुझे चक्करों में फँसा दिया मुझे इश्क ने तो रुला दिया,
मैं हूँ माँग तो किसी और की मुझे मांगता कोइ और है।
मेरे रोब में तो वो आ गया मेरे सामने तो वो झुक गया,
मुझे पिट के ये ख़बर हुई मुझे पीटता कोइ और है।
जो गरजते हैं वो बरसते हों कभी हम ने ऐसा सुना नहीं,
यहाँ भोंकता कोइ और है और काटता कोइ और है।
अज़ब आदमी है ये “राज” भी उसे बेक़सूर ही जानिए,
ये डाकिया है जनाबे मन, इसे भेजता कोई और है ।
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आ नो भद्रा: क्रतवो यन्तु विश्वतः (ऋग्वेद)
(Let noble thoughts come to us from every side)
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