06-11-2014, 08:00 PM
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Re: जीवन की सीख: रजनीश मंगा
जीवन की सीख (Jiwan ki Seekh)
“अरेsss ... सुना नहीं तुमने? जाते हो या नहीं !!” यह सुनते ही हम तो शर्म से पानी पानी हो गए. मेरा साथी तो रुआंसा सा हो गया था. मगर मैंने हौसला नहीं छोड़ा.
“अंकल, आप यह ड्रिंक ज़रा पी कर तो देखें, और प्लीज़, अपनी राय से भी हमें अवगत करायें.” मैंने विनीत हो कर कहा.
“तुम यहाँ से दफ़ा होते हो या पुलिस को फ़ोन करूँ.” उन महाशय का पारा नीचे आने का नाम न ले रहा था.
हम जैसे ही वापिस जाने के लिए मुड़े कि हमें किसी लड़की का स्वर सुनाई दिया,
“सुनिये...sss... !!” हमने आवाज की दिशा में देखा. द्वार पर एक बीस बाईस वर्ष की नवयुवती खड़ी थी. हमारे चेहरे पर आश्चर्य की मुद्रा देख कर उसने कहा, “आप लोग अंदर आ जाइये.” हम गेट खोल कर अंदर दाखिल हुये. डर लगा कि कोई कुत्ता ही हमला न कर दे. लेकिन ऐसा कुछ नहीं हुआ.
“घबराइये नहीं, इधर से अंदर आ जाइये,” उसने हमसे कहा. फिर अपने पापा से मुखातिब हो कर बोली, “पापा, ये भले लोग हैं. पिछले दो दिनों से अपने नए कोल्ड ड्रिंक की पब्लिसिटी के लिए कॉलोनी में सबसे मिल रहे हैं.” फिर हमसे बात करने लगी, “बुरा न मानियेगा, कुछ दिनों से पापा की तबीयत ठीक नहीं है. किसी का आना जाना पापा को अच्छा नहीं लगता. किसी भी अजनबी को देख कर क्रोध करने लगते हैं.”
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आ नो भद्रा: क्रतवो यन्तु विश्वतः (ऋग्वेद)
(Let noble thoughts come to us from every side)
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