Re: किस्सा तीन बहनों का
किस्सा तीन बहनों का
नाश्ता करने के बाद परीजाद ने बुढ़िया से और भी बातें कीं क्योंकि वह कई विषयों की जानकार मालूम होती थी। उसे बुढ़िया से धर्म और ईश्वर भक्ति के बारे में कई प्रश्न पूछे जिनका उसने बहुत अच्छी तरह उत्तर दिया। फिर परीजाद ने बुढ़िया से पूछा, अम्मा, मेरे महल और बाग वगैरह के बारे में तुम्हारी क्या राय है? क्या और भी कोई वस्तु है जो तुम्हारी राय में यहाँ होनी चाहिए? बुढ़िया हँस कर बोली, बेटी, यह प्रश्न मुझ से न करो तो अच्छा हो। मैं कुछ कहूँगी तो तुम कहोगी कि यह दो टके की बुढ़िया मेरे महल और बाग में नुक्स निकालती है। परीजाद ने जोर दे कर कहा, मैं ऐसा कुछ नहीं कहूँगी। तुम जो कुछ कमी इसमें समझती हो वह मुझे जरूर बताओ, मैं उसे पूरा करने की कोशिश करूँगी।
बुढ़िया ने कहा, यहाँ सब कुछ है। किंतु मेरी समझ में यहाँ पर तीन चीजें और आ जाएँ तो संसार में तुम्हारा बाग अद्वितीय हो जाए। लेकिन उनका मिलना कठिन है। एक तो बुलबुल हजार दास्ताँ है। जब वह बोलता है तो हजारों चिड़ियाँ जमा हो जाती हैं ओर उसके स्वर में स्वर मिलाने लगती हैं। दूसरा एक गानेवाला पेड़ है। उसके पत्ते मोटे और चिकने हैं। जब हवा चलने पर पत्ते एक दूसरे से रगड़ खाते हैं तो उनसे मधुर संगीत निकलता है। इस संगीत से हर एक सुननेवाला मुग्ध हो जाता है। तीसरी वस्तु है सुनहरा पानी। उसकी एक बूँद किसी बर्तन में रख दी जाए तो वह बर्तन अपने आप भर जाता है और फिर उसमें से एक फव्वारा निकलता है जो कभी नहीं रुकता, क्योंकि वह पानी लौट कर उसी बर्तन में गिरता है।
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आ नो भद्रा: क्रतवो यन्तु विश्वतः (ऋग्वेद)
(Let noble thoughts come to us from every side)
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