स्मृति वर्घक ब्राह्मी
बुद्धि, स्मरण शक्ति तथा अध्ययन कर्ताओं के लिए उपयोगी औषधियों में "ब्राह्मी" का नाम सर्वोपरि है। इसका नाम ही ब्राह्मी से जुड़ा है जो सृष्टि के रचयिता एवं विद्याओं के स्त्रोत वेदों के सर्वज्ञाता हैं। इस औष्ाधि का प्रयोग उन लोगों के लिए उपयोगी है जो पढ़ने, लिखने, बोलने तथा निर्णय लेने का कार्य करते हैं।
इनमें सभी वैज्ञानिक, विधिवेत्ता, प्राध्यापक, प्रशासक, संपादक, कवि, लेखक शामिल हैं। विद्यार्थियों की तो यह परम हितकारी है। ब्राह्मी के छोटे-छोटे पौधे पूरे देश में जलाशयों के किनारे पैदा होते हैं, पर हरिद्वार से बद्री नारायण तक के पावन पर्वतीय क्षेत्र में सबसे ज्यादा तथा उत्कृष्ट गुणवत्ता वाली ब्राह्मी उत्पन्न होती है तथा वहीं से संग्रह होकर सारे देश में औष्ाधि विक्रेताओं के पास आती है।
ब्राह्मी से मिलते-जुलते रंग रूप वाली तथा लगभग इन्हीं गुणों वाली दूसरी औषधि मंडूक पर्णी भी है। इन दोनों में भेद मुश्किल से हो पाता है। इसलिए ये दोनों ही मिलीजुली उपलब्ध होती हैं। ब्राह्मी के पौधे जमीन पर फैले, इसके पत्तों का अग्रभाग गोलाकार डंठल की तरह पत्ते संकरे इन पर छोटे-छोटे निशान फूल नीलिमा युक्त सफेद मोटाई अपेक्षाकृत कम तथा इसकी हर शाखा में से जड़े निकलकर जमीन में घुसती जाती है। जबकि मंडूक पर्णी के पत्ते अपेक्षाकृत मोटे पत्ते का अग्रभाग नोकदार उठल की तरह चौड़ा तथा फूल लाल होते हैं।
पत्ते ब्राह्मी से कुछ बड़े होते हैं। इसके डालों से भी जड़े निकलकर पृथ्वी में घुसी रहती हैं। ब्राह्मी स्वाद में कड़वी जबकि मंडूक पर्णी कसैलेपन युक्त कड़वी तथा चबाने पर विशेष्ा गंध युक्त होती है। ब्राह्मी को संस्कृत में ब्राह्मी, सरस्वती, शारदा, हिन्दी गुजराती व मराठी में ब्राह्मी, अंग्रेजी में इंडियन पेनीवर्ट तथा वनस्पति विज्ञान में हरवेस्टिस मोनिएरा या मोनिरा कुनी फोलिया कहते हैं।
आयुर्वेद के मतानुसार ब्राह्मी शीतल, मल को नीचे धकेलने वाली, हलकी, मेधावर्घक, कसैली-कड़वी, विपाक में मधुर- आयुवर्घक, वृद्धावस्था रोकने वाली, स्वर की मधुरता व स्मरण शक्ति बढ़ाने वाली, कुष्ठ, पांडु, रक्त विकार, प्रमेह, विष्ा, सूजन, ज्वर, खांसी मिटाने वाली, अग्नि प्रदीपक, ह्वदय को हितकर, वातपित्त कफ तीनों दोष्ाों की नाशक, प्लीहावृद्धि, वातरक्त, श्वास, यक्ष्मा में लाभ दायक दिव्य महौष्ाधि है। इसका पंचांग (पूरा पौधा) ही उपयोगी है।
रासायनिक विश्लेषण
इसमें ब्राह्मीन नामक एक उपक्षार मिलता है जो छोटी मात्रा में रक्तचाप बढ़ाता तथा ह्वदय को मांसपेशियों, श्वास प्रणाली, गर्भाशय और छोटी आंतों को उत्तेजना प्रदान करता है। इसमें कुछ कुचले जैसा पर उससे कम विषैला असर भी होता है। ब्राह्मी में एक उड़नशील तेल मिलता है जो इसे धूप में सुखाने या आग पर गर्म करने से उड़ जाता है। यह तेल इसके गुणों का मुख्य आधार है अत: इसे बचाना चाहिए।
ब्राह्मी हिस्टीरिया, अपस्मार (मिर्गी) तथा उन्माद रोगों में बहुत लाभदायक पाई गई है। इसके सेवन से इन तीनों रोगों में उल्लेखनीय लाभ मिलता है। इसके साथ शंखपुष्पी, बच तथा कूठ का मिश्रण अत्यधिक गुणकारक असर करता है तथा ब्राह्मी की विषाक्तता को कम करते हैं। ब्राह्मी मस्तिष्क को पुष्टि व शांति देती है। इसके प्रयोग से मज्जा तंतुओं के रोग मिटते हैं। अनावश्यक तथा अनर्गल बोलना, शीघ्र उत्तेजित हो जाना, चारों तरफ से उदासीनता बनाना आदि रोग ब्ा्राह्मी के उपयोग से मिर्गी के दौरों की तीव्रता, अवधि तथा आवृत्ति में कमी आती है व हिस्टीरिया पूरी तरह मिट जाता है।
शास्त्रीय उपयोग
ब्राह्मी से ब्राह्मी घृत, सारस्वत घृत, सारस्वत चूर्ण, सारस्वतारिष्ट, ब्राह्मी रसायन, ब्राह्मीवटी, ब्राह्मी चूर्ण, ब्राह्मी शर्बत आदि शास्त्रोक्त नुस्खों के अलावा प्राय: हर आयुर्वेदिक औष्ाध निर्माता कंपनी अपने पृथक-पृथक प्रोप्रायटरी योग बनाकर अनेक टेब्लेट, सीरप, कैप्सूल वगैरह बनाते हैं। पर इस बात से सभी सहमत हैं कि ब्ा्राह्मी मस्तिष्क, ह्वदय, मज्जा, तंतुओं के रोगों, अनेक मानसिक रोगों तथा स्नायु तंत्र के रोगों में आयुर्वेद का गरिमापूर्ण प्रतिनिधित्व कर मानस रोगियों का कल्याण करती है।
बुद्धिवर्घक योग
प्रतियोगिता के इस दौर में सबके प्रयोग के लिए एक अनुभूत प्रयोग प्रस्तुत है- छाया में सुखाए ब्राह्मी के पत्ते, शंखपुष्पी पंचांग, बचदूधिया, कूठशतावर, विदारीकंद, छोटी इलायची, छिले हुए बादाम, मालकांगनी तथा जटामांसी का चूर्ण बनाएं। अन्य चीजों से जटामांसी आधी, बच चौथा भाग लें। चूर्ण को पांच ग्राम की मात्रा में पानी के साथ चटनी की तरह पीस गाय के मीठे दूध तथा दो चम्मच गाय के घी के साथ मिला कर पीवें, स्मरण शक्ति तीव्र होगी।
-वैद्य हरिमोहन शर्मा