Re: मनोरंजक लोककथायें
ब्राह्मण ने जो हुआ था उसे कह सुनाया.
“यह तो बहुत गड़बड़ हो गयी!” सियार के मुंह से निकला, जब ब्राह्मण की बात खत्म हुई, “क्या आप मुझे एक बार फिर से सारी घटना बताने का कष्ट करेंगे ताकि मैं इसे ठीक से समझ सकूँ.”
ब्राह्मण ने पुनः सारी बात दोहराई लेकिन सियार ने सिर हिला कर बताया कि उसे अब भी कुछ समझ नहीं आया.
“यह बड़ी अजीब सी बात है,” उसने अफ़सोस जताते हुये कहा, “ऐसा लगता है कि आप जो एक कान से बोलते हैं वह दूसरे कान से निकल जाता है! चलिए वहां चलते हैं जहां यह सब वारदात हुई. हो सकता है वहां पहुँच कर मैं कुछ समझ सकूँ और कोई सलाह दे सकूँ.”
सो, वे दोनों पिंजरे के पास वापिस आये. बाघ वहां अपने दांत और पंजे तेज कर रहा था और ब्राह्मण का इंतज़ार कर रहा था.
“तुमने बहुत देर लगा दी?” बाघ दहाड़ा, “मगर अब हमें अपना भोजन शुरू करना चाहिये.”
“हमें?” उस दुखी ब्राह्मण ने सोचा. उसकी टांगें डर के मारे कांप रही थीं, “बात करने का कितना बढ़िया तरीका है यह!”
“मुझे सिर्फ पांच मिनट दीजिये, महाराज!” उसने विनय पूर्वक कहा, “ताकि मैं यहाँ आये हुये सियार को सारी बात समझा सकूँ, उसे समझने में थोड़ा वक़्त लगता है.
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आ नो भद्रा: क्रतवो यन्तु विश्वतः (ऋग्वेद)
(Let noble thoughts come to us from every side)
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