Re: मुहावरों की कहानी
मुहावरों वाली कथा (5)
हमने सोचा कि अपनी यह जो हिंदी भाषा है न,पूरे देश को एक सूत्र में पिरोने की क्षमता रखती है, यह स्वामी दयानन्द सरस्वती का कथन है. इसकी उन्नति से किसी भी भाषा का नुक्सान नहीं है. यह तो क्षेत्रीय भाषाओँ के बीच एक पुल का काम कर सकती है. क्यों न हम एक ऐसी रचना लिखें, जिस मे बहुत से मुहावरों और कहावतों का प्रयोग हो. जिसे लोग चटखारे ले ले कर पढ़ें. सो हमने आव देखा न ताव, झट से सारी दुनिया में ढिंढोरा पीट आये कि हम यह करने वाले हैं. इस तरह हमने अपने पैर पर कुल्हाड़ी दे मारी, आ बैल मुझे मार. इस तरह हमने मुसीबतों का पहाड़ हमेशा की तरह अपने उपर गिरा लिया. असल में बात यह है कि हमें पढना लिखना बिल्कुल बिल्कुल नहीं आता. हम पूरे अंगूठा टेक हैं, पढना लिखना हमारे लिए टेढ़ी खीर है. काला अक्षर भैस बराबर है. यह तो आसमान से तारे तोड़ लाने जैसा काम है, उलटी गंगा पहाड़ चढाने जैसा है. यह तो हमारे बल बूते के बाहर की बात है.पर जहाँ चाह वहां राह. हमने लोगों से पूछा कि कैसे लिखा जाता है. कोई हमसे सीधे मुंह बात ही न करे. लोग हमसे किनारा करने लगे. हमसे नजरें चुराने लगे. सामने पड़ जाते तो मुंह फेर लेते. पर कहा गया है न कि हारिये न हिम्मत,बिसारिये ना राम. हमने नदी,पेड़,पहाड़,पशु,पक्षी,सबसे पूछ डाला. पर नतीजा वही ढाक के तीन पात. ठन ठन गोपाल.
(क्रमशः)
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आ नो भद्रा: क्रतवो यन्तु विश्वतः (ऋग्वेद)
(Let noble thoughts come to us from every side)
Last edited by rajnish manga; 01-10-2017 at 11:41 PM.
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