Re: मुहावरों की कहानी
मुहावरों वाली कथा (6)
अंत में हमने सोचा कि घर का जोगी जोगना,गाँव का जोगी सिद्ध. घर की मुर्गी दाल बराबर. घर में पढ़ी लिखी पत्नी के रहते हुए,हम क्यों दर दर की ठोकरें खाएं. हम किसी को भाव क्यों दें. हमने पत्नी के पास जा कर कहा—
सुनो बात तुम मेरी जरा सी
हे मेरे सुख दुःख की साथी
जरा दया हम पर भी करना
अपनी कृपा बनाये रखना
भूत के मूंह में राम राम. आज सूरज पश्चिम से कैसे निकला. मेरी इतनी लल्लो चप्पो क्यों कर रहे हो?
मैंने कहा---एक कलम तोड़ लेख लिख कर पाठकों को मुहावरे सिखाना चाहता हूँ. पर मुझे पता नहीं है कि कैसे लिखा जाता है. तुम इस काम में मेरी मदद करो.
(क्रमशः)
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आ नो भद्रा: क्रतवो यन्तु विश्वतः (ऋग्वेद)
(Let noble thoughts come to us from every side)
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