Re: मुहावरों की कहानी
मुहावरों वाली कथा (8)
हमने कहा: भले काम के लिए तो तुम्हारी मदद मांग रहा हूँ.
राजभाषा का विकास है बड़ा जरूरी
जन जन की आशा हो पूरी
पत्नी- कहीं कटे न नाक तुम्हारी
कहीं लुटे ना लाज
जब इज्जत का प्रश्न बना है
रचनाओं का स्तर सुधारों महाराज
पत्नी जी की बात सुन कर हम तो जल भुन गये. आग बबूला हो गये. बहुत लाल पीले हुए. यह तो सिर मुंडाते ही ओले पड़े. यह तो ठीकरा हमारे सिर पर ही फूट गया. हमने सोचा कि इससे पहले पानी सिर के ऊपर से गुजर जाए,क्यों ना नहले पर दहला मारते हुए,ईंट का जवाब पत्थर से दिया जाए. सारा दोष इन्हीं के माथे मढ़ा जाये. क्यों न समस्या से दो चार हुआ जाए.
(क्रमशः)
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आ नो भद्रा: क्रतवो यन्तु विश्वतः (ऋग्वेद)
(Let noble thoughts come to us from every side)
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