Re: मुहावरों की कहानी
मुहावरों वाली कथा (9)
हमने कहा- भागवान, यही कारण है कि राजभाषा का विकास नहीं होता. तुम्हारा तो वही हाल है कि बन्दर क्या जाने अदरक का स्वाद. थोथा चना बजे घना. अधजल गगरी छलकत जाए.यह कह कर हमने उन्ही का तीर उन्हीं पर चला दिया और अपना उल्लू सीधा कर लिया. हम ऐसे खुश हुए जैसे हमने किला फतेह कर लिया हो,चाहे हमें उधार ले कर लड़ना पड़ा हो. हमें क्या पता था कि हमने भिड के छत्ते में हाथ डाल दिया था. हमारी पत्नी हमें खरी खरी सुनाने लगी.
वह बोली कि तुम निरे बछिया के ताऊ हो. तुम से कुछ नहीं होता. बस कोल्हू के बैल की तरह काम करना ही जानते हो. तुम मेरे काम में मीन मेख भी नहीं निकाल सकते हो. कोई गलती हो जाए तो भी कुछ नहीं कहते हो. तुम बच्चों को भी नहीं डांटते हो. उन्हे बस प्यार से समझा देते हो कि मेरी बात ध्यान से सुनें. वह भी तुम्हारी बात बिना ना नुकुर किये ही मान जाते हैं. हम चाहे दिन भर चिल्लाते रहें,इन पर कोई असर नहीं होता. हमारा तो इस घर में कोई वजूद ही नहीं है.
हुंह,यह भी कोई बात हुई. तुम अपनी पत्नी पर जरा भी तरस नहीं खाते कि बच्चों को कभी डांट ही दो ताकि वोह तुमसे इसी बहाने कभी लड़ ही ले. हमारी तलवारों में तो जंग ही लग गया है. बड़े बड़े सपने देखे थे तुम से लडने के,सब चूर चूर हो गये, सब पर पानी फिर गया. सब कुछ खाक में मिल गया. सब धरा का धरा ही रह गया. सब गुड गोबर हो गया. तुमने ही बच्चों को सर पर चढ़ाया हुआ है. जब भुगतना पड़ेगा तब तुम्हें आटे दाल का भाव पता चलेगा बच्चे पढने लिखने में ध्यान नहीं देते.बस इधर की उधर लगाते फिरते हैं. ये पढ़ लिख कर कुछ बन जाएँ, तो मैं तो बस गंगा नहा लूं. वैसे तुम मेरे बच्चों को कुछ नहीं कह सकते. मैं चाहे जो मर्जी कहूं.
(क्रमशः)
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आ नो भद्रा: क्रतवो यन्तु विश्वतः (ऋग्वेद)
(Let noble thoughts come to us from every side)
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