Re: मुहावरों की कहानी
मुहावरों वाली कथा (11)
हमने भी मोके का फायदा उठाते हुए बहती गंगा में हाथ धोते हुए पत्नी के सिर चढ़ कर बच्चों को बनावटी क्रोध से डाँटना शुरू किया. तुम पढने लिखने में ध्यान दिया करो. ज्यादा तीन पांच नकरो. वरना वह हाल करूंगा कि छठी का दूध याद आ जायेगा. हमने सोचा कि बच्चे वहां से नौ दो ग्यारह हो जायेंगे. रफूचक्कर हो जायेंगे. हवा हो जायेंगे. छू मंतर हो जायेंगे. पढने बैठ जायेंगे. पर बच्चे तो हमसे बुरी आदत की तरह प्यार से हमसे चिपट गये.
हमारी तो बांछें ही खिल गईं. हमने खुश हो कर कहा कि हमें गागर में सागर भरना तो आता नहीं. निबंध लेखन में हमारे नम्बर जरा कम ही आते थे. इसलिए हमारी रचनाएँ जरा लम्बी होती हैं. पर एकता में बड़ा ही बल है. मेरे प्यारे बच्चो, तुम सब भाई बहन मिल कर मेरी रचनाओं का एक भाग पढ़ डालो और एक दूसरे को सुना दो. इससे किसी एक के दिमाग पर ज्यादा बोझ नहीं पड़ेगा.
(क्रमशः)
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आ नो भद्रा: क्रतवो यन्तु विश्वतः (ऋग्वेद)
(Let noble thoughts come to us from every side)
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