Re: श्रीयोगवशिष्ठ
फिर वशिष्ठजी ने भी विश्वामित्रजी का पूजन किया और विश्वामित्रजीने उनका पूजन किया इसी प्रकार अन्योन्य पूजन कर यथायोग्य अपने अपने स्थानों पर बैठे तब राजा दशरथ बोले, हे भगवान्! हमारे बड़े भाग्य हुए जो आपका दर्शन हुआ । जैसे किसी को अमृत प्राप्त हो वा किसी का मरा हुआ बान्धव विमान पर चढ़के आकाश से आवे और उसके मिलने से आनन्द हो वैसा आनन्द मुझे हुआ हे मुनीश्वर! जिस अर्थ के लिये आप आये हैं वह कृपा करके कहिये और अपना वह अर्थ पूर्ण हुआ जानिये । ऐसा कोई पदार्थ नहीं है जो मुझको देना कठिन है, मेरे यहाँ सब कुछ विद्यमान है ।
इति श्री योगवाशिष्टेवैराग्यप्रकरणे विश्वामित्रागमनवर्णनं नाम तृतीयस्सर्गः ॥३॥
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