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Old 19-12-2010, 07:19 PM   #5
teji
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Default Re: शतरंज के खिलाड़ी by प्रेमचंद

मीर - जनाब, इस भरोसे में न रहिएगा। वह चाल सोची है कि आपके मुहरे धरे रहें, औऱ मात हो जाए। पर जाइए, सुन आइए, क्यों ख्वामह-ख्वाह उनका दिल दुखाइएगा?
मिर्जा - इसी बात पर मात ही कर के जाऊँगा।
मीर - मै खेलूँगा ही नही। आप जाकर सुन आइए।
मिर्जा - अरे यार जाना, ही पड़ेगा हकीम के यहाँ। सिर-दर्द खाक नही है, मुझे परेशान करने का बहाना है।
मीर - कुछ भी हो, उनकी खातिर तो करनी ही पड़ेगी।
मिर्जा - अच्छा, एक चाल और चल लूँ।
मीर - हरगिज नही, जब तक आप सुन न आवेंगे, मै मुहरे में हाथ न लगाऊँगा।
मिर्जा साहब मजबूर होकर अन्दर गये तो बेगम साहबा ने त्योरियाँ बदल कर लेकिन कराहते हुए कहा - तुम्हें निगोड़ी शतरंज इतनी प्यारी है! चाहे कोई मर ही जाय, पर उठने का नाम नही लेते! नौज कोई तुम जैसा आदमी हो!
मिर्जा - क्या कहूँ, मीर साहब मानते ही न थे। बड़ी मुश्किल से पीछा छुड़ाकर आया हूँ।
बेगम - क्या जैसे वह खुद निखट्टू ही, वैसे ह सबको समझते है? उनके भी बाल बच्चे है, या सबका सफाया कर डाला है!
मिर्जा - बड़ा लती आदमी है। जब आ जाता है तब मजबूर होकर खेलना पड़ता है।
बेगम - दुत्कार क्यो नही देते?




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